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श्रेष्ठिगोत्र और समरसिंह। भाप श्री उपदेश देते हुए मरुभूमि में पधारे । श्रीमालनगर में उस समय वाममार्गियों का उपद्रव बढ़ रहा था । आचार्यश्रीने श्रीमाल नगर में पधार कर वाममार्गियों के वन सदृश पापरूपी किल्ले को तोड़ डाला । आपश्रीने उपदेश दे कर व्यभिचारियों को समार्ग पर लगाया । आपने वर्ण, जाति और ऊंच नीच की विषमता को दूर कर राजा और प्रजा को अहिंसा धर्मोपासक बनाया। प्राचार्य श्रीस्वयंप्रभसूरि के पट्टधर श्रीश्राचार्य रत्नप्रभसूरि हुए । आपने भी अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने आत्मबल के प्रभाव से वीरात् ७० वर्ष में उपकेश नगर में पधार कर एक ऐसा कार्य कर दिखाया कि उन का यश सदा के लिये अमर हो गया। उस समय के सत्ताधीश वाममार्गियों के पचड़ों को तोड़ डालना कोई साधारण कार्य नहीं था। किन्तु जिन महात्माओंने जन सेवा के अर्थ अपना सर्वस्व तक बलिदान कर दिया हो उन के लिये यह कठिनाई नहीं के बराबर है। आचार्य रत्नप्रभसूरि महाराजने उपकेशपुर के राजा उपलदेव और नागरिकों को प्रतिबोध दे कर मांस, मदिरा, व्यभिचार आदि का त्यागन करा कर उन की वासक्षेप द्वारा शुद्धि तथा सब का संगठन कर 'महाजन संघ' स्थापित किया। संघ स्थापित कराने के साथ ही साथ सेवा पूजा और भक्ति आदि उपासना करने के लिये महावीर स्वामीके
१ देखिये-जैनजाति महोदय-प्रकरण तृतीय पृष्ठ ४१ से ६४ तक ।