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शत्रुंजय तीर्थ ।
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की स्थिति वास्तव में दयनीय थी । उस विकट समय में जनता को सहायता पहुँचानेवाले श्रीमालवंश - भूषण दानी स्वनामधन्य परोपकारी झगडूशाई की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है । राजा, महाराजा, राणा, महाराणा, बादशाह और साधारण जनता तथा दीन दुःखी तकने झगडूसे परम सहायता पाई । वास्तवमें झगडूशाहने अभयदान दिया । इतना ही नहीं वरन् आपने प्राचीन तीर्थ भद्रेश्वर का उद्धार कराया तथा बृहद् संघ निकालकर श्री शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा कर वहाँ सात देवकुलि - काएँ स्थापित कराकर अनन्त पुन्योपार्जन किया ।
प्राचीन तीर्थ मांडवगढ़ के महामंत्री पेथदशाई का नाम भी
१ स्थाने स्थाने ध्वजारोपं चकार जिन वेश्मसु । जहार जनतादौस्थ्यं जगहूर्जगती तले ॥ असङ्ख्य सङ्घलोकेन स्रमं यात्रां विधाय सः । शत्रुंजये खतके प्राप चात्मपुरं वरम् ॥ विमलाचल शृड्गे स श्रीनाभेयपवित्रिते । सप्तैव देवकुलिका रचयामासिवान् शुभाः ॥
— श्रीसर्वानंदसूरि विरचित ' झगडू चरित्र' महाकाव्य के सर्ग ६ ठा श्लो.० ४०, ४१ और ४५ वी ( जो श्रीयुत मगनलाल दलपतराम खल्वर की ओर से प्रकाशित हुआ है।)
२ कोटाकोटि जिनेन्द्र मण्डप युतः शान्तिश्च शत्रुंजये ।
- वि० सं. १३८७ में सत्तरिसयठाण के रचयिता श्री सोमतिलकसूरि विरचित पृथ्वीधर साधु ( पेथड़शाह ) कारित चैत्य स्तोत्र ( मुनि सुन्दरसूरि कृत गुर्वावली जो य. वि. ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित हुई है उस के पृष्ठ २० वे के श्लोक नं १९९ से)