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शश्रृंजय तीर्थ ।
लेकर स्व तथा परमात्मा का उद्धार कर अपनी अचल कीर्ति अमर कर गये ऐसे ऐसे उदार हृदय भद्र महापुरुषों के जन्म लेनेसे ही इस मरुभूमि का विशेष महात्मय बढ़ा है क्योंकि उन्होंने अपने नाम के साथ ही साथ अपनी जन्मभूमि को भी यशस्वी बनाया।
इतना ही नहीं इसके अतिरिक्त भी अनेक राज्य तथा लोक मान्य मंत्री, महामंत्री, प्रतिष्ठित उच्च राज्यपदाधिकारी तथा धनी दानी और महत्वाकांक्षी धर्मिष्ठ सेठ साहूकारोंने भी लाखों, कोड़ों और प्रारुपये खर्च करके दूर दूर देशों से संघ सहित इस तीर्थाधिराज की यात्रा कर जिनशासन की बहुत अच्छी और अनुकरणीय सेवा की है । उन्होनें संघ निकालकर केवल जैनियों को ही नहीं वरन् जैनेतरों के साधुओं और गृहस्थों को भी साथ लेकर इस तीर्थ की यात्रा का अनुपम लाभ पहुँचाया। इस असीम उपकार का पूरा वर्णन लिखना इस लोहे की लेखनी की तुच्छ शक्ति के बाहर की बात है । पाठकगण सहज ही में अनुमान लगा सकते हैं कि लोगों की श्रद्धा इस तीर्थपर कितने उत्कृष्ट दर्जे की थी और जो निरंतर अबतक चली आ रही है। यद्यपि वर्तमान समय में जैनियों के पास प्रायः राज्याधिकार नहीं हैं तथापि तीर्थ की भक्ति सेवा और पूजा उतने ही उत्साह से की जाती है । इस तीर्थ को सर्व जैनी बड़ी पूज्य दृष्टिसे देखते हैं ।
इस तीर्थाधिराज के अभ्युदय के अर्थ जिन जिन भावुक