________________
शत्रुंजय तीर्थ ।
२५
हैं । यह उद्धार यवनकाल में हुआ है जिस का सारा हाल विस्तृत रूप से उस उद्धार को अपनी आंखों से देखनेवाले तथा उद्धार के समय निकट उपस्थित रहनेवाले निवृत्ति गच्छीय श्रीपासढ़सूरि के शिष्यरत्न श्री अंब ( आ ) देवसूरि ने उसी वर्ष (वि. सं. १३७१ ) में स्वरचित समरारास में उल्लेखित कर दिया है । यद्यपि यह रास संक्षिप्त में है तथापि जो वर्णन उस में दिया गया है वह सुललित और मनोहर भाषा एवं पद्धति से लिखा हुआ है । इस रास की भाषा प्राचीन गुजराती है । रास को अत्यंत ऐतिहासिक महत्व का समझ कर ही स्वर्गस्थ श्रीयुत चिमनलाल दलालने अपनी वृद्ध अवस्था में 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह ' नामक ग्रंथ में योग्यतापूर्वक इसे सम्यक् प्रकार से सम्पादित कर संकलित किया है और जो गा० ओ० सीरीज बड़ौदा द्वारा प्रकाशित भी हो चुका है ।
इतिहास से भी प्रमाणिक महत्व इस जमाने में और भी आदीश्वर की मूर्ति की प्रतिष्ठा
चूँकि यह उद्धार आधुनिक
साबित हो चुका है अतः इस का विशेष है । श्रीतीर्थेश्वर भगवान
1
१ संच्छरी इकहतर ए थापि उ रिसहजिणंदो ।
चैत्रवदि सातमि पहुतघरे, नंदउ ए नंदउ जां रविचंदो ॥ ९
पासडरिहिं गणहरह नेउग्रगच्छ निवासो,
तसु सीसिहिं अंबदेवसूरिहिं रचियउ ए रचियड एर चियउ समरारासे;
एहु रा जो पढइ गुई नाचिउ जिणहरि देइ, श्रवणि सुणई सो बयठठ ए तीरथ तीरथ ए तीरथ जात्र फल लेइ । १०