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समरसिंह। धधक कर समाज और राष्ट्र को भस्मीभूत करने को तैयार थी। उस समय उस विनाशकारी ज्वाला को बुझाकर सुख और शांति की धारा प्रवाहित करनेवाले एक महापुरुष की अत्यंत भावश्यक्ता थी। ठीक ऐसे भावश्यक अवसरपर दुख से पीड़ित जनता की रक्षा करने के लिये भारतभूमिपर प्रातःस्मरणीय भगवान महावीर देव का जन्म हुआ । आपश्रीने उत्कट तपश्चर्या द्वारा दिव्यज्ञान को प्राप्तकर अपनी बुलुन्द आवाज द्वारा देश के कोने कोने में ऐसा संदेश पहुंचाया कि जिसके फलस्वरूप ऊँच और नाच के विषमभाव एक दम दूर हो गये । जनता पुनः एक वार परम शांति के रसास्वादन करने को महावीर प्रभु के माहिंसा के झंडे के नीचे एकत्रित हो गई । भगवान महावीरस्वामी के समवसरण में राजा
और रंक के लिये कोई भेद नहीं था। दीन और धनिकों के साथ भिन्न भिन्न व्यवहार और व्यवस्था नहीं थी। क्या उप
और क्या नीच समवसरण के द्वार प्राणीमात्र के लिये खुले थे। जिस प्रकार पुरुषों को मोक्ष प्राप्त करने का अधिकार है उसी प्रकार निएं भी मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं यह भगवानने अपने श्रीमुख से फरमाया । त्रियों के लिये भी सन्यास जैसे पद लेने का अवसर दिया गया और भनेक भाग्यशालिनी महिलामोंने उससे लाभ उठाना प्रारम्भ कर दिया। त्रियोंने तो इस पोर पुरुषों की अपेक्षा भी अधिक अभिरुचि प्रकट की।
उस समय की साम्यता वास्तव में मादर्श थी। जिस