SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शत्रुंजय तीर्थ । १९ की स्थिति वास्तव में दयनीय थी । उस विकट समय में जनता को सहायता पहुँचानेवाले श्रीमालवंश - भूषण दानी स्वनामधन्य परोपकारी झगडूशाई की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है । राजा, महाराजा, राणा, महाराणा, बादशाह और साधारण जनता तथा दीन दुःखी तकने झगडूसे परम सहायता पाई । वास्तवमें झगडूशाहने अभयदान दिया । इतना ही नहीं वरन् आपने प्राचीन तीर्थ भद्रेश्वर का उद्धार कराया तथा बृहद् संघ निकालकर श्री शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा कर वहाँ सात देवकुलि - काएँ स्थापित कराकर अनन्त पुन्योपार्जन किया । प्राचीन तीर्थ मांडवगढ़ के महामंत्री पेथदशाई का नाम भी १ स्थाने स्थाने ध्वजारोपं चकार जिन वेश्मसु । जहार जनतादौस्थ्यं जगहूर्जगती तले ॥ असङ्ख्य सङ्घलोकेन स्रमं यात्रां विधाय सः । शत्रुंजये खतके प्राप चात्मपुरं वरम् ॥ विमलाचल शृड्गे स श्रीनाभेयपवित्रिते । सप्तैव देवकुलिका रचयामासिवान् शुभाः ॥ — श्रीसर्वानंदसूरि विरचित ' झगडू चरित्र' महाकाव्य के सर्ग ६ ठा श्लो.० ४०, ४१ और ४५ वी ( जो श्रीयुत मगनलाल दलपतराम खल्वर की ओर से प्रकाशित हुआ है।) २ कोटाकोटि जिनेन्द्र मण्डप युतः शान्तिश्च शत्रुंजये । - वि० सं. १३८७ में सत्तरिसयठाण के रचयिता श्री सोमतिलकसूरि विरचित पृथ्वीधर साधु ( पेथड़शाह ) कारित चैत्य स्तोत्र ( मुनि सुन्दरसूरि कृत गुर्वावली जो य. वि. ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित हुई है उस के पृष्ठ २० वे के श्लोक नं १९९ से)
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy