SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समरसिंह अनुपमा' नामक तड़ाग शिलाबद्ध बंधवाया जिसकी अनुपम शोभा देखने से ही बन जाती थी । यह तड़ाग इसी तीर्थ के परिसर प्रदेशमें था । जो स्वच्छ और मधुर जल से भरा हुआ कमलों सहित शोभित दर्शकों के मनको सहज ही में अपनी मोर आकर्षित करता था । इस प्रकार के और उल्लेख भी ऐतिहासिक अनुसंधानसे मिल सकते हैं। ૧૮ " इतिहास प्रसिद्ध नागपुर ( नागौर ) के महामंत्रीश्वर भोसवाल- कुल भूषण पूनदशाहने', जो दिल्लीश्वर मौजदीन बादशाह का माननीय कृपापात्र था, इस तीर्थ की यात्रा करने के लिये बृहद् संघ निकाला था जिसमें २००० संख्या में तो केवल गाडियों ही थीं। जब यह संघ धोलका प्राम के निकट पहुँचा तो गुर्जेश्वर के मंत्रीद्वय वस्तुपाल और तेजपालने बड़ा स्वागत किया । संघपति पूनड़शाहने युगल मंत्रीश्वरों को भी यात्रार्थ संघ में लिया | इनके योगसे संघ का ठाठ कुछ और भी बढ़ गया । इन भाग्यशालियोंने असंख्य द्रव्य व्यय कर तीर्थ की यात्रा, सेवा और पूजा की । वि. संवत् १३१३ से १३१५ तक क्रमशः तीन वर्ष का दुष्काल भी ऐसा भयंकर दृश्य उपस्थित कर रहा था कि चहुँ ओर हाय हाय और चीत्कार सुनाई देती थी । अन्नके अभाव से जनता को प्राणों के लाले पड़ रहे थे। भूखके मारे कमर दूबर हो गई थी । कई लोग मृत्यु की गोद में जा रहेथे । उस समय १ जैन शिलालेख भाग दूसरा ( जिनविजयजी द्वारा सम्पादित )
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy