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समरसिंह।
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संसारमें परम पुनीत तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय नामक महातीर्थ खूब ही विख्यात है। इस भवतारक तीर्थ की महिमा बड़े बड़े ऋषि महात्माओंने मुक्तकण्ठ से की है इतना
ही नहीं वरन् खुद शासन नायक तीर्थकर
- भगवानने भी अपने श्रीमुख से इस लोकोत्तम तीर्थ का सुन्दर और सारगर्भित विवेचन कर इस के विषय में जनता पर अच्छा प्रभाव डाला है और इसी कारण से अनेक ऋषि मुनियोंने इस पवित्र तीर्थ की शीतल छाया में चातुर्मास में या शेषकाल में रहकर दुस्तर तपश्चर्या और ज्ञान ध्यान कर मोक्ष पद को प्राप्त किया है। इस शरणागत पालक तीर्थ के परमाणु तो इतने स्वच्छ और पवित्र हैं कि श्रद्धासहित व भक्तिपूर्वक दर्शन और स्पर्शन करनेसे ही भव-भवान्तरों के दुष्ट पापपुञ्ज सहज ही में नष्ट हो जाते हैं। यही कारण था कि पूर्वजमाने में असंख्य श्रावकवर्ग लाखों और क्रोड़ों का द्रव्य व्यय कर बड़े बड़े प्रभावशाली संघ सहित इस दीनोद्धारक तीर्थ की यात्रा कर स्व और परात्मानों का सहज ही में कल्याण किया करते थे तथा आज भी अनेक भाग्यशाली जन अपना कल्याण कर रहे हैं । इन्द्र नरेन्द्र चक्रवर्ती और अनेक दानी मानी नररत्न दानवीरोंने विपुल द्रव्य खर्च कर इस अलौकिक तीर्थ के उद्धार करवा के अपनी आत्मा को उज्ज्वलतर किया। इन सब बातों से प्रत्यक्ष सिद्ध है कि इस तीर्थ की महिमा