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"श्री कापरड़ा मन्डन श्री स्वयंभूपार्श्वनाथ स्तवन"
• ( चाल-चोककी ) स्वयंभू पार्श्वनाथ, कापरड़े शुद्ध मनसे कोई ध्यावेगा। ज्ञानी फरमावे, वह भवभवमें सुख पावेगा । टेर ॥ (मिलत) तेवीसवाँ जिनराज, जिन्होंका उज्ज्वल यशः जग छाया है । ऐसा नहीं जगमें, जिन्होंने पार्श्व गुण नहीं गाया है । नगर जैतारण ओसवंस में भण्डारी बड़भागी है। श्री भानुमल्लजी नाम आपका जैनधर्म के रागी हैं । सदाचार षट्कर्म को पाले, इष्टबली अति भारी हैं। हकूमतका पैसा, राजकी सेवा सदा हितकारी है । (छूट ) एक दिन किसी दुष्टने, चुगली खाई दरबारमें । भण्डारीको पकड़ बुलावो, क्या कहेगा जवाबमें । जैतारणसे चालिया, असवार हुआ सब साथमें । देवदर्शन किया बिना, भोजन नहीं लेॐ हाथमें। (शेर) आय कापरड़े गुरुसे अर्जि कीनी । भलों० ॥ फते होगी तुम जावो आशिष ज दीनी । वात सुनी नरनाथ कुर्व फिर दीनो ॥ भलो० ॥ पाय कापरड़े गुरुको सरणो लीनो । ( दौड़ ) गुरु कृपा शिरधार । देव सहायता ले लार । निलनी गुल्म आधार । बनाया मन्दिर श्रीकार २ । माल चौमुखजी चार । सात खण्ड सुखकार । गगनसे करते हैं विचार । स्वर्ग मोक्ष के दातार ॥ (मिलत) चार मण्डप और रासपुतलियों, थंभा गिना न जावेगा।
१ पांचवाँ देवलोक में एक विमान का नाम है।
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