Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
४१
.
चतुर्मुखी प्रतिभा के धनी
0 साध्वी प्रमोदसुधा 'साहित्यरत्न' (परम विदुषी प्रतिभामूर्ति स्व० श्री उज्ज्वल कुमारीजी
महाराज की सुशिष्या)
परम श्रद्धय वात्सल्यवारिधि, पूज्य उपाध्याय प्रवर कर भव-भव के पाप-ताप और संतापों की आग से मुक्त श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के मधुर संस्मरण लिखने की होना चाहते हैं। आप श्री ने बम्बई, पूना और घोड़नदी उत्कट इच्छा हो रही है पर लिखते-लिखते मुझे विचार आ में वर्षावास किये किन्तु हम उन वर्षावासों का लाभ नहीं रहा हैं कि क्या लिखू, क्योंकि पूज्य गुरुदेव श्री का अल्प ले सकी किन्तु भावुक-भक्त गणों के मुख से मैंने सुना कि परिचय है, अल्प बुद्धि है, अल्प सामर्थ्य है, अल्प साधन है “वावजी की वाणी में गजब का ओज है, माधुर्य है और और परम श्रद्धय का जीवन हिमालय की तरह विराट है प्रवचन करने की ऐसी सुन्दर कला है कि सारी जनता और सागर की तरह विशाल है । असीम को ससीम शब्दों भाव-विभोर हो जाती है।" आप श्री के मुखारविन्द से वीर में बांधने का काम टेढ़ी खीर है तथापि लिखने के अपार वाणी का सुन्दर निर्झर प्रवाहित होता है तब ध्यान ही नहीं उत्साह को रोक नहीं सकती। मुझे आप श्री के दर्शनों का रहता कि कितना समय हो गया है। प्रवचन सुनने के लिए प्रथम सौभाग्य बम्बई महानगरी में मिला था। प्रथम हजार काम छोड़कर लोग पहुंच जाते हैं, वस्तुतः अद्भुत दर्शन से आपके अगाध ज्ञान का, आपके मधुर स्वभाव का कला है। क्या राजस्थान, क्या उत्तर प्रदेश, क्या मध्यभारत आपके उदार और विराट हृदय का जो प्रभाव अन्तर्मानस क्या महाराष्ट्र, क्या गुजरात और क्या दक्षिण भारत, जहाँ पर पड़ा उसे शब्दों द्वारा व्यक्त करना कठिन है, असंभव भी आप श्री के मंगल चरण टिके वहां आप श्री की मधुर हैं । सूर्य के प्रथम दर्शन से ही उसकी जगमगाती हुई सहस्र वाणी ने और दिव्य साधना ने वह चमत्कार दिखाया कि रश्मियों के प्रकाश का सहज परिचय हो जाता है वैसे ही नास्तिक भी आस्तिक हो गये । मैंने स्वयं अनुभव किया है आपके प्रथम दर्शन का प्रभाव मन पर पड़ा।
कि महाराष्ट्र की जनता आपके लिए नई थी, उतनी परिआपकी वाणी अत्यन्त मधुर है । एक बार भी आप चित नहीं थी किन्तु आपके दिव्य प्रभाव से आज महाराष्ट्र श्री की मधुर वाणी कोई सुनले तो वह सदा-सदा के लिए की जनता आपको अपना सरताज मानती है। उनके आप पर न्योछावर हो जाता है। जब मैंने प्रथम बार अन्तर्मानस में आपके प्रति अपारनिष्ठा है। क्या बालक आपके दर्शन किये तो सर्वप्रथम आपके मुखारविन्द से वह और क्या युवक, क्या स्त्री और क्या पुरुष सभी के हृदय सुधास्निग्ध मधुर वाणी झंकृत हुई 'पधारो सतियां जी' पर आपका एकछत्र साम्राज्य है। पधारो "यह आदरसूचक शब्द है, हम लघु-साध्वियों को हमने उपाध्याय श्री जी महाराज में चतुर्मुखी प्रतिभा पधारो कहना यह आपके बड़प्पन की निशानी है । मैंने के दर्शन किये हैं। उनमें ब्राह्मणत्व के ज्ञान की किरणें चिन्तन किया कि महापुरुष बनने का गुर यही है । आप आलोकित है वे ज्ञान-पुञ्ज हैं। साथ ही क्षात्रत्व का दिव्य श्री की जीवनवाटिका में एक नहीं, किन्तु हजारों सद्गुणों तेज भी उनमें झलकता हैं । जब प्रवचन के पट्ट पर आसीन के पुष्प खिल रहे हैं, महक रहे हैं यही कारण है कि आप होते हैं और प्रवचन करते हैं तब वह वीरत्व सहस्रमुखी श्री के जहाँ भी चरण-कमल टिकते हैं वहां साधना की कमल की तरह खिल उठता है। कार्य की कुशलता और सुमधुर सौरभ को पाने के लिए भक्तगण भंवरे की तरह वार्तालाप की चातुरी को देखकर आप में वैश्यत्व के दर्शन मंडराते रहते हैं; वे आप श्री की ज्ञान गंगा में गोते लगा- होते हैं और आप श्री की सेवाभावना को निहार कर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org