Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
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सिद्ध हुई हैं। पवन के झोंके से दीपक की टिमटिमाती लौ उनके कठोर श्रम को देखती हूँ, उनकी लगन को देखती हूँ बुझती है किन्तु दावानल और अधिक प्रज्वलित होता है। तो मेरा सिर श्रद्धा से नत हो जाता है। आज भी उनमें
पूज्य गुरुदेव श्री श्रमण संघ के एक वरिष्ठ सन्त हैं, युवकों-सी स्फूर्ति है, जोश है, कार्य करने की तीव्र लगन उपाध्याय पद से समलंकृत हैं तथापि उनका हृदय मोम की है। इस समय आप दक्षिण भारत में विचरण कर जैनधर्म तरह मुलायम है। साम्प्रदायिक पक्षपात और पूर्वाग्रह से की प्रभावना कर रहे हैं। भयभीत, निरीह, अवश और मुक्त है । जो सत्य है वही मेरा है, जो मेरा है वही सत्य है कातर मानवता ने आपकी सन्निधि में प्राण पाया है। इस बात को वे नहीं मानते। सत्य सदा सत्य ही रहता है आपके प्रभामण्डल ने जन-जन को अपनत्व की अनुभूति दी उसके साथ कभी समझौता नहीं हो सकता । यूनान की एक है। दाक्षिणात्य जनता आपके अलौकिक प्रभामण्डल से प्रसिद्ध कहावत है 'प्लेटो मुझे प्रिय है, सुकरात मुझे प्रिय है आकृष्ट हुई है और अभिनव आत्म-विश्वास के साथ वह किन्तु सत्य मुझे सर्वाधिक प्रिय है। 'सत्य ही भगवान है" साधना के मार्ग में आगे बढ़ रही है, यह प्रसन्नता की सत्य भगवान की उपासना करना ही साधक की साधना का बात है। उद्देश्य है। दर्शन सत्य का सौन्दर्य हैं और सत्य दर्शन का दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन प्रसंग पर मेरी यही जीवन है। दर्शन का इतिहास सत्य का इतिहास है। हार्दिक अभिलाषा है कि सद्गुरुदेव आपके कुशल नेतृत्व में भारतीय दार्शनिकों ने सत्य को जीवन का माधुर्य माना आपश्री के शुभाशीर्वाद से हमारा सदा विकास होता रहे है। मैंने अनुभव किया है कि गुरुदेव में सत्य की आस्था और आपश्रीजितनी प्रबल है तो कार्य की निष्ठा उतनी ही स्फूर्त एवं तेजोमय है। उनकी समर्थ बहुमुखी प्रतिभा ने नये चिन्तन
चिरयुग करते रहो धरा पर, के द्वार उद्घाटित किये हैं, संस्कृति और साहित्य की
जिनवाणी का विमलोद्योत । विविध विधाओं की सर्जना की है।
और बहादो इस धरती पर पूज्य गुरुदेव श्री ६६ वर्ष के हो गये हैं किन्तु जब मैं
आध्यात्मिकता का नव स्रोत ।।
आकर्षण का केन्द्र
महासती चतरकुंवर जी संसार में सद्गुरु का अत्यधिक महत्व है। सद्गुरु भावना को प्रोत्साहन दिया सद्गुरुदेव ने । सद्गुरुदेव की हमारी जीवन-नौका के नाविक हैं जो संसार-समुद्र के काम, अपार कृपादृष्टि से सभी साध्वियों की मेरे पर असीम कृपा क्रोध, मोह आदि भयंकर आवर्गों में से सकुशल पार करा है। मैं अपना परम सौभाग्य समझती हूँ कि सद्गुरुदेव ने सकते हैं । सद्गुरु हमारे आध्यात्मिक जीवन के प्रकाशमान और सद्गुरुणी जी ने मुझे ऐसा अनूठा जीवन का राज दीपक हैं । वैय्याकरणों ने गुरु शब्द की व्युत्पत्ति की है- बताया जिससे मेरे जीवन में बहुत ही शान्ति है। जो अज्ञान अन्धकार को नाश करे वह गुरु है। श्रद्धय सद्गुरुदेव का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज सच्चे मैं क्या लिखू? क्योंकि मैं विशेष पढ़ी-लिखी नहीं हैं। अर्थों में सद्गुरु है । वे हमारे जीवन के मार्गदर्शक हैं। किन्तु शबरी के जूठे बेर और विदुर रानी का शाक और
मैंने सद्गुरुणी जी श्री सोहनकुंवर जी महाराज के चन्दना के उड़द के बाकुले राम, कृष्ण और महावीर को पास चारित्रधर्म ग्रहण किया। सद्गुरुणी जी ने मुझे प्रिय हुए वैसे ही मेरी भावना जिसमें शब्दों का लालित्य जीवन सूत्र देते हुए कहा कि यदि तुम बड़ी उम्र होने के नहीं है, किन्तु भावों का गाम्भीर्य है, हृदय की पवित्रता है, कारण से अध्ययन नहीं कर सकती हो तो कोई बात नहीं, उसे अवश्य ही पूज्य श्री स्वीकार करेंगे । पूज्य गुरुदेव श्री किन्तु सेवा-भावना को अपनाये तो भी तेरा कल्याण हो के सम्बन्ध में मैं क्या कहूँ ? उनका गहन गम्भीर व्यक्तित्व सकेगा । मुझे सद्गुरुणी जी की बात बहुत ही प्रिय लगी और उनका तेजस्वी कृतित्व हमारे लिए सदा आकर्षण का और सेवा में मुझे अपूर्व आनन्द की अनुभूति होने लगी। केन्द्र रहा है । और युग-युग तक वह आकर्षण केन्द्र सदा मैंने अपना जीवन व्रत ही सेवा को बनाया । और मेरी बना रहे यही मेरी अन्तर्हृदय की पुकार है।
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