Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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परम श्रद्धय अध्यात्मयोगी उपाध्याय प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के मैं किचित् सम्पर्क में आया है और उस स्वल्प सम्पर्क ने मेरे अन्तर्मानस पर गहरी श्रद्धा की रेखाएँ अंकित की हैं। वे ज्ञानसम्पन्न हैं, वीतराग वाणी के प्रति अत्यन्त श्रद्धालु हैं, उनके मन के कण-कण में करुणा और वात्सल्य अगड़ाइयाँ ले रहा है । वे स्वभाव से बहुत ही उदार है, व्यवहार में कुशल है, परोपकारयुक्त वृत्ति आदि हजारों सद्गुण हैं जो सहज ही दर्शक के दिल को लुभा लेते हैं ।
मैंने पूज्य गुरुदेव श्री के दर्शन बहुत ही छोटी उम्र में आज से पचास वर्ष के पूर्व किये हैं। संवत् आदि का पूर्ण स्मरण नहीं हैं, किन्तु ऐसा मुझे ध्यान है कि आपश्री महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज के साथ उदयपुर पधारे थे । उस समय आपश्री को टाइफाइड हो चुका था । और आपश्री उदयपुर में कुछ दिन स्वास्थ्य की अस्वस्थता के कारण विराज रहे थे । उसके बाद मैंने अनेकों बार आपके दर्शन किये। मेरी सद्गुरुणी जी श्री सोहनकुँवर जी म०
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प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंन
श्रद्धा की रेखायें
पारदर्शी और तेजोमय व्यक्तित्व
महास्थविरा महासती सौभाग्य कुंवर जी मुझे सौभाग्य से अपने जीवन में अनेकों महापुरुषों के दर्शनों का सुअवसर मिला है जिनकी प्रसिद्धि एक महान् विशिष्ट व्यक्ति के रूप में थी, पर बहुत कम महापुरुषों के मुखारविन्द पर सत्य और पवित्रता की वह उज्ज्वल ज्योति पूरे तेज के साथ चमकते और दमकते देखी, जैसे कि एक शुद्ध आबदार हीरे में चमकती दिखायी देती है। मैं पार दर्शी और तेजोमय महापुरुषों की अगली पंक्ति में श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय पुष्कर मुनि जी महाराज को स्थान प्रदान करती हूँ ।
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श्री जगदीश मुनि (बड़ी सम्प्रदाय)
उनकी प्रवचन शैली बहुत ही आर्कषक है । जैसे गुरली की मधुर शंकार पर और संगीत की सुमधुर स्वर लहरियों पर मृग और सांप मुग्ध हो जाते हैं, वैसे ही आप श्री के प्रवचन को श्रवण कर श्रोतागण आनन्द विभोर हो उठते हैं ।
आप पूर्ण स्वस्थ रहकर युग-युग तक जैन शासन की सेवा करते रहें, वही मेरी हार्दिक मंगलकामना है।
स्थविरा महासती की सेवा के कारण उदयपुर स्थानापन्न विराजी थीं, उस समय अनेकों बार आपश्री दर्शन देने हेतु उदयपुर पधारे। सन् १९७४ में आपश्री का उदयपुर पदार्पण हुआ था। उस समय वृद्धावस्था के कारण लम्बे विहार न होने से उदयपुर में ही ठहरी हुई थी। मेरा स्वास्थ्य कुछ अस्वस्थ था। मेरी एक शिष्या मोहनकुँवर जी को उस समय लकवे का दौरा हो चुका था, किन्तु आपश्री के मांगलिक ने अद्भुत जादू बताया। आपके मांगलिक में गजब की शक्ति है । और एक अनूठे आनन्द की अनुभूति होती है ।
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आप हमारे भूतपूर्व सम्प्रदाय के नायक हैं। हमारा श्रमणी - वृन्द आपश्री के नेतृत्व में ज्ञान दर्शन में आगे बढ़ा है । और निरन्तर आगे बढ़ता रहेगा ? आपश्री का मंगलमय आशीर्वाद सदा हमें मिलता रहे और आपसी भूले भटके जीवन राहियों को सदा मार्गदर्शन देते रहे, यही हार्दिक सभक्ति सविनय प्रार्थना है ।
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Carpita
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