Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन अन्य
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जाज्वल्यमान नक्षत्र
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0 श्री दिनेशमुनि
(जैनसिद्धान्त विशारद)
___ सामान्य व्यक्ति कब, कहाँ पर जन्म लेता है, कहाँ पर सच्चे नेता हैं। इसलिए उन्हें दिखावट पसन्द नहीं । उनका उसका पालन होता है और वह किस प्रकार जीवन व्यतीत जीवन स्फटिकवत् पारदर्शी द्रव्य से बना हुआ है जिसमें करता है, इसकी जिज्ञासा किसी को नहीं होती, किन्तु छल, प्रपञ्च, दुराव या छिपाव नहीं है। न दोहरा जीवन जब व्यक्ति व्यष्टि की सीमा को उल्लंघन कर समष्टि है, न दोहरा व्यक्तित्व है। वे तात्त्विक के साथ सात्विक बनता है उसका कार्यक्षेत्र सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय भी हैं। उनकी तात्त्विकता और सात्विकता दर्शक के दिल होता है, तो उसके जीवन का एक-एक क्षण कोहिनूर हीरे को लुभा लेती है। की तरह मूल्यवान् बन जाता है और जन-जन की दृष्टि में वह श्रद्धा केन्द्र बन जाता है । जनमानस उसके सम्बन्ध आपश्री धर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति, कला और में जानना चाहता है, उसकी सारी चेष्टाएँ, मानसिक व्यापार ज्ञान के सजग प्रतीक हैं। आपका व्यक्तित्व विभिन्न रंगों और बौद्धिक चिन्तन हजारों व्यक्तियों के जीवन में प्राण से निर्मित उस रंगीन चित्र की तरह आकर्षक है, आप फूंकते हैं उनकी सुषुप्त भावनाओं को जागृत करते हैं। उपदेष्टा हैं, धर्मसंघ के शासक हैं, और नीति के प्रतिष्ठापक उनका जीवन एक आदर्श जीवन होता है ।
हैं । आपका तेजस्वी जीवन सामाजिक क्षितिज पर एक परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य पुष्कर मुनि जी महाराज का जाज्वल्यमान नक्षत्र की तरह चमक रहा है। आपका जीवन एक आदर्श जीवन है। आपश्री के जीवन में औप- चिन्तन सहस्राक्ष बनकर जीवन और जगत् की गम्भीर चारिकता का आत्यन्तिक अभाव है, आप बनना नहीं जानते समस्याओं को सहज रूप से सुलझा देता है। पर आपकी आपके पास अपने नैसर्गिक चेहरे के अतिरिक्त अन्य कोई कमनीय कल्पना गरुड़ की तरह अनन्त गगन में विहरण मुखौटा नहीं है, आपके चारित्र्य का मूल है सचाई, ईमान- की प्रेरणा देती है । मैंने आपश्री के दर्शन बहुत ही लघुवय दारी, बाहर-भीतर एक सदृश । भगवान महावीर ने सच्चे में किये और आपके पावन उपदेश को श्रवण कर आपके साधक के जीवन का विश्लेषण करते हुए कहा-सच्चे श्री चरणों में आर्हती-दीक्षा ग्रहण की, आपश्री के सन्निकट साधक का जीवन जैसा भीतर में होता है वैसा ही बाहर रहकर मुझे अपार आनन्द की अनुभूति हुई। उस आनन्द में होता है और जैसा बाहर में होता है वैसा ही भीतर की अभिव्यक्ति शब्दों के द्वारा नहीं की जा सकती। में होता है।
श्रद्धय सद्गुरुवर्य का जीवन प्रेरणा का महान् स्रोत है। जहा अन्तो, तहा बाहिं
'समयं गोयम मा पमायए' का सिद्धान्त आपके जीवन में जहा बाहि, तहा अन्तो।
साकार रूप से उतरा है। आपकी छत्रछाया में मैं ज्ञान,
दर्शन, चारित्र की अभिवृद्धि करता रहूँ। आपका पथउनका जीवन एक अखण्ड जीवन है, जीवन में बना- प्रदर्शन मेरे लिए सदा प्रेरणादायी बना रहे और मैं अपने वट और सजावट नहीं, किन्तु वास्तविकता है। अपने जीवन को अधिकाधिक चमका सकू यह हार्दिक मंगलआपको बनाना उन्हें नहीं आता। वे अभिनेता नहीं किन्तु कामना ।
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