Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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पूना चातुर्मास : एक पुण्य संस्मरण 10 साध्वी श्री केशरदेवी जी (पंजाबी)
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अपने जीवन काल में मैंने विविध क्षेत्रों में अनेकों उज्ज्वल अन्तःकरण में भविष्य की सुनहली आशाएँ हैं, चातुर्मास किये हैं, लेकिन पूना का पुनीत चातुर्मास मेरे वर्तमान में गतिशील कदम हैं और भूत की भव्य अनुस्मृति पट पर स्वर्ण की रेख के सदृश अंकित एक अद्वितीय भूतियाँ । वे कर्मनिष्ठ साधक हैं, निष्काम कर्मयोग के संस्मरण है, जिसे भुलाये नहीं भूल सकती।
उपासक, संघ के सच्चे सेवक और वीतराग वाणी के इधर श्रद्धेय सद्गुरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी महाराज रक्षक हैं। का सादड़ी सदन स्थानक में सन् १९७५ का चातुर्मास ज्ञान की पिपासा गुरुदेव की अद्भुत है, स्वाध्याय, निश्चित होना और उधर मेरा भी कारणवश साधना सदन तत्वचिन्तन, ध्यान आदि में आपश्री को विशेष आनन्दानुमें चातुर्मास होना एक अनसोचा, आकस्मिक संयोग, भूति होती है। अवकाश के क्षणों में भक्तिरस, वैराग्य रस, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। अनेकों भावतरंगें वीर रस आदि की भव्य संरचनाएँ करना आप श्री के बाए उस समय मेरे मस्तिष्क में लहर की तरह उठती और हाथ का खेल है। विलीन हो जाती थीं......।
इसके अतिरिक्त आप श्री का मधुर, आत्मिक स्नेह, पूना का यह चातुर्मास मेरे लिए मानो एक दैवी वर- पुत्रवत् वत्सलता, अपनत्व का व्यवहार और अनुपम सूझदान था, प्रबल पुण्य के द्वारा संचित अपूर्व उपलब्धि थी, बूझ मेरे लिए श्रद्धा का विषय बन गया। जिसकी स्मृति अब भी मन को गुदगुदा देती है। श्रद्धय ऐसे महान् व्यक्तित्व के धारक पूज्य गुरुदेव का अभिश्री पुष्कर मुनिजी महाराज के सान्निध्य में मैंने उनसे अनेकों नन्दन होना ही चाहिए । मैं भी आप श्री के पदाम्बुजों में प्रेरणाएं ली हैं और अति निकटता से उनके जीवन का अपने स्नेह सिंचित श्रद्धापुष्प अर्पित कर स्वयं को कृतकृत्य लाभ लिया है।
समझती हूँ। आपश्री का वरद हस्त युगों-युगों तक हम पर गुरुदेव श्रमण संस्कृति के देदिप्यमान नक्षत्र हैं। उनके बना रहे, इसी शुभ भावना के साथ......"
शत-शत अभिनन्दन !
महासती जयकुवर जी सन्त राष्ट्र की विमल विभूति है, उसका तपःपूत प्रभावित हुई । उनके चेहरे पर दिव्यता, भव्यता, सरलता, व्यक्तित्व और सर्जनात्मक कर्तृत्व जन-जन के लिए आदर्श सरसता है । तो वाणी में मेघ गम्भीर गर्जना है, जिसे है, यही कारण है कि अतीत काल से ही जनमानस सन्त श्रवण कर जन-जन के मन-मयूर नाच उठते हैं। और साथ के चरणों में नतमस्तक होता रहा है उसी आदर्श सन्त- ही आपका हृदय सद्-भावनाओं से छलाछल भरा हुआ है। परम्परा में राजस्थान केसरी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी यही कारण है कि आप श्रमण संघ के एक वरिष्ठ सन्त हैं, महाराज हैं। उनका समग्र जीवन त्याग, वैराग्य से ओत- उपाध्याय है, और युग-प्रधान मनस्वी सन्त श्रेष्ठ हैं। प्रोत है, उसमें आचार की मधुर सौरभ और विचारों का आप श्री का सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है, दिव्य आलोक जगमगा रहा है, वे "सर्वजन सुखाय सर्वजन इस सुन्दर अवसर पर शुद्ध श्रद्धा के प्रसूनों की यह तुच्छ हिताय" परिभ्रमण करते हैं, और भूले-भटके जीवन भेंट आप श्री के शुभ चरणों में समर्पित करती हुई अपने राहियों को मार्ग-दर्शन प्रदान करते हैं ।
को गौरवान्वित अनुभव करती हूँ । कवि के शब्दों में___ मैंने पूज्य उपाध्याय श्री के दर्शन अनेकों बार किये हैं, समता-शुचिता, सत्य समन्वित, पावन जीवन दर्शन और जब भी दर्शन किये तब उनके विराट् सद्गुणों से मैं क्रान्तविचारक निस्पृह साधक, लो शत शत अभिनन्दन
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