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पूज्या गुणगरिमाढ़या: " गुणीजनों का बहुमान करना "
समुद्र में रत्न भी होते है और कचरा भी होता है। तालाब में कमल भी होते हैं और कीचड़ भी होता हैं। गुलाब के पौधों पर फूल भी होते है और कांटे भी होते हैं। चन्द्रमा में चान्दनी भी है और कलंक भी है। वैसे ही इस संसार में गुण भी है और दुर्गुण (दोष) भी है। गुण पूजक मनुष्य बुराई में भी अच्छाई देख लेता है और दुर्गुण दर्शक अच्छाई में भी बुराई देख लेता है। गुण पूजक मनुष्य यदि समुद्र के पास जाएगा तो कहेगा कि धन्य है इस समुद्र को कि जिसमें कितने ही रत्न पैदा होते हैं। कितना अद्भूत है ये समुद्र कि जिसके गर्भ में अनेक रत्न समाएं हुए है। यदि दोष दर्शक मनुष्य समुद्र के पास जाएगा तो उसे कचरा ही नजर आएगा, वह कहेगा भले ही समुद्र में रत्न छिपे हो किन्तु कचरा कितना भरा है इसमें। और इसका पानी भी खारा होता है । गुण दर्शक तालाब के पास जायेगा तो कहेगा कि धन्य है इस कमल के फूल को जो किचड़ में पैदा होकर भी कितना निर्मल और निर्लेप है। दोष दर्शक कहेगा कि कमल तो कितनी गन्दगी में खिलता है। गुण दर्शक चन्द्र को देखेगा तो कहेगा कि वाह ! क्या दिव्यता है चन्द्रमा की और इसका प्रकाश भी कितना सुहाना और शीतल लग रहा है। दुर्गुण दर्शक यदि चन्द्रमा को देखेगा तो कहेगा चन्द्र
तो कलंक है, धब्बा है। गुण पूजक अगर गुलाब के पौधों के पास जाएगा तो कहेगा कि वाह! गुलाब का तो क्या कहना। ये कितनी खूबसूरती से लहरा रहे है और महक रहे है। जबकि दुर्गुण दर्शक कहेगा कि इन पौधों में फूल तो बहुत कम है, कांटे ही कांटे दिख रहे है। निंदा से छुटने का उपाय क्या है? निंदा दूर कैसे होती है? निंदा दूर करने का उपाय उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज बता रहे हैं- निन्दा दूर करने का उपाय है गुणीजनों का बहुमान । गुणीजनों का बहुमान करने से पहले गुणीजनों को खोजना पड़ता है। इससे गुण और गुणी ढुंढ़ने की आदत बनती है। अभी हमारी आदत क्या है? गुणों को देखने की और
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