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था, उत्तर मिले तो ठीक, न मिले तो ठीक, दुबारा पूछने का भी सवाल नहीं आता , रास्ते से गुजर रहे है, बच्चे पूछते हैं यह क्या है? वृक्ष क्या है? फल क्या है? ये हरे क्यों है?
विदेश से एक व्यक्ति भारत की यात्रा पर आया। अपनी प्रशंसा करना उसे बहुत अच्छा लगता था। वह हर समय दूसरे व्यक्ति को नीचा दिखाने की कोशिश करता था। एक दिन किसी सब्जी की दुकान पर गया। एक-एक सब्जी का नाम पूछने लगा। ककड़ी का नाम सुनकर उसने कहा- हमारे देश में जिसे ककड़ी कहते है वह तो इससे बीस गुनी बड़ी होती है। इसका नाम क्या है? यह केला है साहब । केला? अजीब बात है, हमारे देश में तो यह दो मीटर जितना लम्बा होता है। तरबूज की और इशारा करते हुए पूछा यह क्या हैं? सब्जी वाला विदेशी की बातों से झूझला चूका था। उसने कहा- साहब यह अंगूर है अंगूर! विदेशी बोला इतना बड़ा अंगूर? सब्जी वाला बोला यह तो छोटा अंगूर है राजस्थान में तो इससे भी बड़े-बड़े अंगूर होते है। हँसना मत यह तो लोगों की आदत होती है पूछने की और प्रदर्शन करने की । सूरज दिन में क्यों निकलता है रात में क्यों नही? सितारे अंधेरे में क्यों टिमटिमाते है उजाले में क्यों नहीं? अगर उत्तर न दिया तो उत्तर के लिए उन की प्रतिक्षा नहीं है, जब तक उत्तर मिल रहा था। पूछते गये- उत्तर न भी दो जोर नहीं डालेंगे कि उत्तर दो। पूछने के लिए पूछ रहा है। जैसे चलने के लिए ही चलता है कही पहुँचना नहीं है, मजा लेता है। जब बोलने लगता है तो बोलने के लिए बोलता है। पूछने में प्रश्न नहीं है सिर्फ कुतुहल है। दूसरा थोड़ी गहराई बढ़े जिज्ञासा पैदा होती है सिर्फ पूछने के लिए नहीं है उत्तर की तलाश है, तलाश बौद्धिक है, आत्मिक नहीं। जिज्ञासा से भरा व्यक्ति उत्सुक है चाहता है कि उत्तर मिले, लेकिन उत्तर बुद्धि में संजोलिया जाएगा, जानकारी बढ़ेगी, ज्ञान बढ़ेगा आचरण नहीं, आदमी को बदलेगा नहीं, वैसा ही रहेगा, ज्यादा जानकार जरूर हो जायेगा। फिर तीसरा तल, इसलिए नहीं पूछ रहा है कि थोड़ा और जान ले, इसलिए पूछ रहा है कि जीवन दाँव पर लगा है, उत्तर पर निर्भर है कि कहाँ
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