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होवे, वह श्रावक तो ऊंचा--नीचा होने लगा, और पूछ ही लिया कि महाराज ये आपका स्तवन कब पूरा होगा? जब उन्होने जवाब दिया, काशी में इतने वर्ष रह कर जो घास काटी थी उसको एकत्रित करके अब बांध रहा हूँ। इतनी सारी घास काटी थी तो बांधने में वक्त लगेगा ही न।
कहते है कि उस प्रतिक्रमण में ही उन्होंने सीमन्धर स्वामी के साड़े तीन सौ गाथा के स्तवन की रचना की। याद रखना यह इन दोनों का गुस्सा नहीं था। निजानंद की मस्ती थी। जिन्हें आत्मसाक्षात्कार हुआ हो, उनमें ही ऐसी खुमारी होती है। ऐसे मस्ताना पुरूष जो बोलते है वही मंत्र बनता है, जहाँ चलते है वहाँ तीर्थ होता है।
ज्ञानानन्द की मस्ती उन्हे ही मिल सकती है जो पुर्वोक्त उनत्तीस शिक्षाओं सूचनाओं के अनुसार जीवन जीता है। सचमुच प्रभु कृपा के बिना ऐसी शिक्षाएँ अच्छी भी नहीं लगती, प्रभु कृपा हो तभी इन शिक्षाओं को जीवन में उतारने का मन होता है। जिसे ज्ञानानन्द मिला, आत्मानन्द मिला उसे सर्वस्व मिला।
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