Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 203
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरीश्वरजी महाराज ने अपना साहित्य सृजन जारी रखा। वे सारे ग्रन्थ आज उपलब्द नहीं है परन्तु जो कुछ विद्यमान है, वे सब ग्रन्थ जिनशासन का अमूल्य खजाना है। कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरिश्वरजी महाराज ने अपने जीवन काल में साढे तीन करोड़ श्लोक प्रमाण प्राकृत संस्कृत धर्मग्रन्थों का सृजन किया था। शृतधर महर्षि श्री उमास्वातिजी महाराज ने अपने जीवन काल के दौरान पाँच सौ ग्रन्थों का सृजन किया था। कलिकाल में श्रुतकेवली समान उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज ने अपने जीवन काल के दौरान सैंकडों संस्कृत तथा बालभोग्य शैली में गुर्जर साहित्य का सृजन किया था। कुमारपाल महाराजा ने अपने जीवन काल दरम्यान इक्कीस ज्ञान भंडारों की स्थापना की थी। मांडवगढ़ के मंत्रीश्वर पेथड़शाह ने धर्मघोष सूरीश्वरजी महाराज साहब के मुख से ग्याहर अंगों का विधि पूर्वक श्रवण किया था और भगवती सूत्र में जितनी बार गोयम शब्द आया उतनी ही बार सुवर्ण मुद्रा द्वारा श्रुत की पूजा की थी, इस तरह उन्होंने छत्तीस हजार सुवर्णमुद्राओं से पूजन करते हुए भगवती सूत्र का श्रवण किया था। ज्ञानी कहते है कि श्रद्धापूर्वक, सद्भाव पूर्वक श्रुतज्ञान की भक्ति हो तो वह केवल ज्ञान प्रदान करने में सक्षम हैं। 197 For Private And Personal Use Only

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