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से आदमी के विचार और उच्चार स्वयमेव समृद्ध बन जाते हैं । वह जो कुछ भी करेगा सोच कर ही करेगा । वह जो बोलेगा सोचकर ही बोलेगा। उसके विचार और आचार में संयम होगा। बोले गये और लिखे गये श्रेष्ठ शब्दों से भी सुविचारों की ताकत कई गुना ज्यादा होती है । दुर्विचार दुर्गति को निमंत्रण देते है। घर में रहा कचरा ज्यादा से ज्यादा घर ही गंदा करेगा और घर तक ही सीमित रहेगा, कपड़ों को लगा मैल भी कपड़ें ही बिगाड़ेगा और कपड़ों तक ही सीमित रहेगा, परन्तु ये दुर्विचार इस जीवन को तो कलंकित करेंगे ही साथ ही साथ आने वाले भव को भी बिगाड़ेंगे । दुर्विचार आत्मा के पतन का कारण बनते
हैं ।
शेख चिल्ली की कहानियों से सभी परिचित है, उन कहानियों को सुनकर हमें बड़ी हँसी आती हैं। लेकिन हमारा मन भी शेखचिल्ली के समान है, बल्कि उससे भी खतरनाक विचार करता रहता है, मन में भयंकर संकल्प विकल्प चलते रहते है। हर व्यक्ति मन से ही बड़े-बड़े मंसूबे बांधता रहता है। जो कभी पूरे भी न हो सके ऐसे-ऐसे ख्वाब देखता है। हम रास्ते से गुजर रहे
बीच में कोई दुश्मन मिल गया अथवा किसी से झगड़ा हो गया, रास्ते से दोनों चले भी गये, अपना-अपना काम भी करने लगे, लेकिन विचार उसी के आ रहे है। उसने मुझे इस तरह कह दिया, गाली दी। चलो, बोला तो कोई बात नहीं किन्तु उसने मुझे थप्पड़ भी मारी। अगर लोग बीच में नहीं आते तो उस गधे की अक्कल ठीकाने ला देता, मार-मार के उसकी तो हड्डियाँ तोड़ देता। आज तो वह लोगों के कारण बच गया, लेकिन अब कहीं मिला तो उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा। शिक्षक विद्यार्थी को डाँटता है तो दूसरा विद्यार्थी खुश होता है, कि यह हमेशा मुझे परेशान किये रहता था, आज तो मजा आ गया | जिसको शिक्षक ने डाँटा है वह भी मन ही मन शिक्षक पर क्रोध करेगा, उसके विचारों में तुफान आ जाएगा, इच्छा होगी कि अभी शिक्षक का गला घोंट दूँ। बड़े भाई और छोटे भाई में भी यही होता है। तो हर बुरी घटना में संकल्प-विकल्प शुरू हो जाते हैं। हम जितना शुभ करके आत्मा का हित नहीं करते उतना सिर्फ
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