Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थ्यं वृद्धानुवृत्या च “वृद्ध पुरुषों का अनुसरण करना" एक अकेली बुढ़िया अन्य गाँव जा रही थी। सांज होने को आयी । बीच में भयानक जंगल आया, फिर भी बुढ़िया ड़री नहीं। क्योंकि उसे अपनी पुत्री के वहाँ जाने की बड़ी इच्छा थी। उतने में सामने से एक बाघ आ धमका। वह तो बुढ़िया पर छलांग मारकर झपटने के लिए तत्पर हो गया, किन्तु बुढ़िया हुशियार निकली। कहने लगी, बाघ भाई! बाघ भाई! अभी मुझमें क्या धरा है? हड्डियाँ और चमड़ी इसमें तुम्हें क्या मिलेगा और तुम क्या तो खाओगे | मेरी बात सुनो। मुझे मेरी बेटी के वहाँ जाने दो, रोटी-चपाती खाने दो, सिरा, पुडी, जलेबी, रसगुल्ले खाने दो मुझे मोटी तगड़ी हो जाने दो, फिर मुझे खा लेना। बाघ ने भी सोचा बुढ़िया की बात तो ठीक है, फिर भी बाध ने कहा कि अगर तुम नहीं आयी तो? क्यों नहीं आऊँगी? मेरा गाँव और घर इसी रास्ते से है न? अतः मैं जरूर आऊँगी। बाघ को बुढ़िया की बातों पर विश्वास हो गया, और उसे जाने दिया। बाघ ने जाती हुई बुढ़िया से कहा, खुब माल-पानी खाकर मोटी तगड़ी होकर आना, मैं यहीं हूँ और तुम्हारा इन्तजार करूंगा । हाँ... हाँ..... यहाँ ही रहो। लेकिन बुढ़िया फिर लौटी? ना..... ना..... वह तो वादा करके गई सो गई । वह बुढ़िया दूरदर्शिता के कारण बाघ के पंजे से छिटक गई। बूढ़े बड़े अनुभवी होते है। वे मुश्किलों में रास्ता निकालना जानते हैं। उनके विचार योग्य और परिपक्व होते है। उनके विचारों में दूरदर्शिता होती है। उनके विचार संकुचितता से परे होते हैं। वे जो कुछ भी करते है, सभी के लिए करते हैं । वृद्ध पुरूषों के पास अनुभव का एक खजाना होता है। कदाचित् हो सकता है उनके पास बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ न भी हो तो भी अपने अनुभव के आधार से वे भारी समस्या का भी सही समाधान कर देते हैं। यहाँ वृद्ध से तात्पर्य बूढ़े व्यक्ति से नहीं हैं। वृद्ध अर्थात् परिपक्व बुद्धि । जिनके पास सोचने -206 = For Private And Personal Use Only

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