Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 127
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org रोगों से घिर गई? अब मुझे काया की ममता को छोड़कर आत्मा के सच्चे व शाश्वत सौंदर्य को हासिल करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। इस प्रकार उन्होंने राज्य का परित्याग करके चक्रवर्ती के वेष को छोड़कर आत्मसौंदर्य को पाने के लिए साधु बन गए । सनत्चक्री के जीवन में यकायक आए इस परिवर्तन से सभी दिग्मूढ़ हो गए। उनका अंतःपुर करुण विलाप करने लगा। अंतःपुर की स्त्रियाँ उनका पीछा करने लगी और पुनः लौटने के लिए आजी-जी भरी प्रार्थनाएँ करने लगी। परंतु भीतर से विरक्त बन चूके सनत्चक्री के मन में रूदन भरे शब्द करूण आक्रंद और विलाप का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। न तो देह में फैले हुए भयंकर रोग ही उनकी आत्म साधना में बाधक बन सके और न ही उन्हें स्त्रियों का मोह आकर्षित कर सका । छः-छः मास तक उनका अंतःपुर उनका पीछा करता रहा......फिर भी वे महामुनि अपने साधना मार्ग से चलित नहीं हुए । आखिरकार हार - थककर अंतःपुर की स्त्रियाँ वापस अपने महलों में लौट गई। महामुनि रत्नत्रयी की आराधना में तल्लीन बन गए। वर्ष पर वर्ष बीतने लगे । इन्द्र महाराजा ने इन्द्र सभा में एक दिन पुनः सनत्कुमार महामुनि के धैर्य सत्त्वगुण की सराहना की। महामुनि के सत्त्व गुण की प्रशंसा को नहीं सह पाने वाले वे मिथ्या दृष्टि दो देव मुनि की परीक्षा के लिए वैद्य का रूप लेकर पृथ्वी पर आए । वैद्य वेषधारी देव मुनि के चरणों में आकर प्रणाम करने लगे। महामुनि ने उन्हें धर्मलाभ की आशीष दी। वैद्यों ने कहा भगवंत ! हम शारीरिक रोगों की चिकित्सा करने वाले कुशल वैद्य है, आपके देह पर दृष्टिपात करने से लगता हैं कि आपका शरीर रोगों से घिरा हुआ है। अतः हे कृपालु ! आप हम पर कृपा 'करें और हमें रोगों की चिकित्सा करने का मौका दें । वैद्यों की बात को सुनकर सनत्कुमार मुनि ने कहा, बंधुओं! देह रोग से भी भयंकर और खतरनाक कर्म रोग मेरी आत्मा को लगा हुआ है, अगर उस रोग को तुम मिटा सकते हो तो मेरी छूट हैं, अन्यथा शरीर के रोग की तो मुझे कुछ परवाह नही है, इस रोग को तो मैं भी मिटा सकता हूँ। इतना कहकर उन्होंने 121 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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