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बड़ा फर्क है। भगवान की अपेक्षा भागवान बनना ही सभी पसन्द करेंगे। हम प्रायः यही सोचा करते है कि कहीं कोई ऐसा साधन मिल जाए। जिससे जल्दी ही भागवान बन जाऊं, सभी की समृद्धि मुझे मिल जाय। किन्तु आज भगवान बनना या भगवान की शरण में जाना कोई नहीं चाहता। अगर भगवान या मोक्ष में रूचि होती तो भागवान बनने की इच्छा ही नहीं होती। अपने ध्येय को सदैव याद रखो, क्योंकि ध्येय हट जाएगा तो हमारे चलने की दिशा भी बदल जाएगी।
एक मुसाफिर रेल गाड़ी से जा रहा था। टी.सी. आया और टिकट मांगा, तो उस मुसाफिर ने टिकट निकालने के लिए अपने जेब में हाथ डाला उस जेब में टिकट नही मिला तो दूसरे और तीसरे जेब में देखा किन्तु टिकट मिला नहीं। वह ढूंढ़ने लगा टी.सी. अन्यों से टिकट देखने लगा। इधर वह मुसाफिर बड़ा परेशान हुआ, सारा सामान बैग वगेरह खोलकर टिकट ढूंढने लगा। पसीना-पसीना हो गया। तब टि.सी. को यह भरोसा हुआ कि आदमी सज्जन दिख रहा है। वृद्ध भी है, कपड़े भी व्यवस्थित है, बड़ी-बड़ी मुछे और दाढी भी है। तो उसने कहा रहने दिजिये आप परेशान मत होइए टिकट की जरूरत नहीं है। मुझे विश्वास है कि आपने टिकट लिया है। तब उस वृद्ध मुसाफिर ने कहा- आपको टिकट की जरूरत नहीं है लेकिन मुझे तो जरूरत है न, तब टी.सी. ने आश्चर्य से पूछा आपको क्यों जरूरत है? तब उस बूढ़े मुसाफिर ने कहा- किस स्टेशन पर मुझे उतरना है वह तो उस टिकट में ही लिखा हुआ है। मुझे स्टेशन का नाम याद नहीं है।
तो आपसे कहता हूँ अपने ध्येय और लक्ष्य को कभी बिसारना मत, हमेशा याद रखना तभी आप अपने लक्ष्य को हासिल कर सकोंगे।
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