Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 198
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का पठन-पाठन व तत्त्वाभ्यास कर सकते हो। तीर्थकर परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट आगम या आज्ञा हृदय में होने पर, वास्तव में तीर्थंकर परमात्मा ही हृदय में है। क्योंकि उस आगम अथवा आज्ञा के प्रणेता तीर्थंकर परमात्मा ही है। उस आगम और आज्ञा को हृदय में स्थापित करने से अवश्य ही सभी प्रकार की अर्थ सिद्धि होती है। आगम का बहुमान, वास्तव में तीर्थंकर परमात्मा का ही बहुमान है। शास्त्रों के आधार पर ही हमें प्रत्यक्ष और परोक्ष पदार्थों के वास्तविक स्वरूप का भान होता है। इसलिए साधकों को शास्त्र अध्ययन में प्रयत्नशील रहना चाहिए। जिस के दिल में जिनेश्वर प्रणित आगम शास्त्रों के प्रति आदर बहुमान नहीं है, उसकी सभी धर्म क्रियाएँ निष्फल हैं, व्यर्थ हैं। आगम शास्त्रों के प्रति अपने हृदय में रहे अपूर्व बहुमान भाव को व्यक्त करते हुए श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज ने कहा है। कथं अम्हारिसा पाणा, दुसमकाल दुसिया। हा अणाहा कह हुतो, जइ नहुँतो जिणागमो।। दुषमकाल से दूषित इस पंचमकाल में अगर मुझे जिनागमों की प्राप्ति नहीं होती तो हमारे जैसे अनाथों की क्या हालत होती? प्रकांड़, विद्वान और प्रौढ़ प्रतिभासंपन्न सूरि पुरंदर श्रीमद् हरिभद्रसूरिश्वरजी महाराज जिनागमों की प्राप्ति में अपने को सनाथ कह रहे हैं, और शास्त्र बिना अनाथ कह रहे हैं। उनके इन उद्गारों से हम समझ सकते हैं कि जिनागमों से उनकी मति कैसी हो गई होगी? हेमचन्द्रसूरिजी महाराज को कलिकाल सर्वज्ञ पद कैसे मिला था? वे उस काल में रहे सभी शास्त्रों के जानकार थे, उस कारण से कलिकाल सर्वज्ञ का बिरूद मिला था। वर्तमान युग में ऐसे कलिकाल सर्वज्ञ की जरूरत है। इसी अध्यात्मसार ग्रन्थ के निर्माता आज से करीब तीन सौ वर्ष पूर्व हुए महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी की ज्ञान प्रतिभा का तो क्या कहना! एक पंडित ने देश भर के पंडितो को जीतकर जब काशी में प्रवेश किया तब काशी के पंडित डर के मारे थर-थर कांपने लगे थे। आए हुए पंडित के साथ वाद-विवाद करने के लिए कोई भी पंडित तैयार नहीं हुआ, सब डरे हुए थे तब For Private And Personal Use Only

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