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शास्त्र सिद्धांत (जिनागम) पर संपूर्ण श्रद्धा उत्पन्न होना अत्यन्त ही कठीन है। मोक्ष मार्ग के साधक साधु भगवंत एवं श्रावक के लिए तो शास्त्र/आगम ही चक्षु है, उसी का आधार लेकर उन्हें मोक्ष मार्ग में यात्रा करनी होती है। क्या सभी शास्त्र केवली रचित है? नहीं, सर्वज्ञ कथित मोक्ष मार्ग का अनुगमन करने वाले परमज्ञानी, परमगीतार्थ, श्रुतधर भवभीरू आचार्यों के द्वारा उल्लेखित/निर्दिष्ट शास्त्र भी प्रमाणित हैं, क्योंकि उन्होंने जिन ग्रन्थों और शास्त्रों को बनाया उनमें सर्वज्ञ के वचनों को नजर समक्ष रखकर ही आत्माओं के हितार्थ बनाया है। अतः पूर्वाचार्यों गीतार्थों के द्वारा रचित ग्रन्थ-शास्त्र भी उतने ही प्रमाणित माने जाते हैं, जितने कि सर्वज्ञ एवं श्रुतधरों से प्रमाणित माने जाते हैं। साधुओं के लिए रोजाना पाँच प्रहर तक स्वाध्याय करने की आज्ञा है। पाँच प्रहर यानी लगभग पंद्रह घंटे, चौबीस घंटों में से पंद्रह घंटे स्वाध्याय करने का विधान है। बिना स्वाध्याय के शास्त्रों के रहस्यों को समझा नहीं जा सकता।
शारीरिक व्याधि दूर करने शरीर को स्वस्थ और स्फुर्तिला रखने के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम एवं योगासन है, जिससे शरीर निरोगी स्वस्थ
और स्फुर्तिला, चुस्तिला रहता है, वैसे साधुओं/ साधकों की आत्मशुद्धि के लिए, आत्मोन्नति के लिए आगम शास्त्र है। जिसके अध्ययन से बुद्धि विकसित होती है। विचार पवित्र रहते हैं। मानसिक शान्ति मिलती हैं। विकारों का शमन होता है, और मन की चंचलता दूर होती है। ये आगम शास्त्र चिन्तामणी रत्न के समान है, जो दुश्चिन्ताओं का हरण करते हैं। आगम शास्त्रों को पढ़ो जरूर, मगर मन घडंत-अपने मनोनुकूल अर्थ मत निकालो वर्ना तैरने की कला से अनभिज्ञ आदमी पानी में कुदने पर डूब मरता है, वैसे ही आगम शास्त्रों को पढ़ने के बाबत भी है। तैरना नहीं जानने वाला अगर पानी में कुदता है तो वह अकेला ही डूबता है किन्तु आगम ग्रन्थ को नहीं जानने और नहीं समझने वाला जब उन्हें पढ़ता है तो गलत अर्थ निकाल कर खुद तो डुबता ही है लेकिन साथ में अन्यों को भी डूबोता है। हाँ, जो जानकार है उनके सान्निध्य में रहकर शास्त्र
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