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शब्दकोश रखा हुआ है। अतः हमें कोई जरूरत नहीं है। वह आदमी हँसने लगा मुझे धोखा मत दो वह शब्दकोश नहीं है। वह धर्मग्रन्थ हैं, गृहिणी ने कहा कि, तुमने कैसे पहचाना वह धर्मग्रन्थ है? उसने कहा उस पर जमी हुई धूल से पता चल जाता है कि वह क्या है, उस पर इतनी धूल जमी हुई है कि कोई उठाता नहीं, कोई उठाता तो इतनी धूल नहीं जम सकती थी। ये हालत है धार्मिक किताबों की। कलाकार के हाथ अनगढ़ वस्तुओं को पकड़ते हैं और अपने उपकरणों के सहारे उन्हें नयानभिराम सुन्दरता से भर देते हैं। कुम्हार मिट्टी से सुन्दर मटके बना लेता है। मूर्तिकार पत्थर के टुकड़े को देव प्रतिमा में परिणत कर देता है। गायक बांस के टुकड़े से बंसी की ध्वनी निनादित कर देता है। धातु का टूकड़ा स्वर्णकार के हथौड़े की चौट खाकर आकर्षक आभूषण बन जाता है। जीवन भी एक अनगढ़ तत्त्व है। इसे संवारने वाला सद्ज्ञान और सद्साहित्य है। गंदगी से भरे व्यक्ति को अपने मैल को धोने के लिए सरोवर तो है, पर वह सरोवर की खोज ही न करे तो दोष किसका? सरोवर का नहीं। रोग दूर करने के लिए चिकित्सा तो है, पर रोगी उसे उपलब्ध ही न करे तो दोष किसका? चिकित्सा का नहीं। धूप से परेशान, आकुल-व्याकुल व्यक्ति को धूप से बचने के लिए वृक्षादि स्थान तो हैं पर वह वृक्ष की खोज ही न करे तो दोष किसका? वृक्ष का नहीं। वैसे जन्म जन्मान्तर से त्रस्त हम जैसों को आगम शास्त्रों का, सद्साहित्य का समुद्र तो है पर हम ही न ढूंढे न पढ़े तो दोष किसका? आगम ग्रन्थ, साहित्य का नहीं। साहित्य मानव जीवन की अनुपन संपत्ति है। साहित्य ही अतीत को वर्तमान से और वर्तमान को भावि से मिलाता है। अतीत में मानव ने जो चिन्तन मनन किया वह हमें वर्तमान जीवन में विरासत में मिला है, और वर्तमान में जो चिन्तन करता है वह भाविपीढ़ी को प्राप्त होगा।
सद्साहित्य ने अनेक लोगों में प्रेरणा दीप लजाएं है। निराश, हताशों में उत्साह का संचार किया है। साहित्य में जो ताकत है वह तोप, गोला, बन्दूक, तलवार में नहीं है। क्योंकि साहित्य मानव के हृदय को ही बदल देता
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