Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 141
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ने शक्ति जवाब दिया था। अब धर्मराज ने जवाब दिया। जो व्यक्ति ठोकर खाने तथा अनुभव पाने के बाद भी नहीं संभलता, वह सबसे बड़ा मूर्ख है और यही दुनिया का सबसे बड़ा सत्य है। युधिष्ठिर ने अपनी बात का खुलासा करते हुए आगे बताया कि जब नकुल यहाँ मृत अवस्था में पड़ा था तो उसकी हालत देखकर भी मेरे शेष तीन भाइयों को समझ नहीं आई। उन्होंने विचार नहीं किया कि इस की हालत ऐसी क्यों हुई। बस, भेड़, बकरियों जैसा काम इन्होंने किया और कुएँ में जा गिरे। इसलिए मेरा कहना है सबसे बड़ा सत्य है कि आदमी अनुभव का फायदा उठाए और जो फायदा नहीं उठाता, उससे बड़ा बेवकूफ और कोई नहीं है। यह घटना एक प्रतीक है। जो आदमी ठोकर लगने से भी नहीं संभलता, उसके सामने यदि स्वयं भगवान भी आ जाएँ तो भी उसे नींद से जगाना बहुत कठीन है। संसार के दोषों का दर्शन आये दिन अपनी जिन्दगी में होता रहता है। गुरूभगवंतों के मुख से प्रवचन के द्वारा भी सुनते रहते है, फिर भी हमारी मोह नींद नहीं उड़ती, आंख नहीं खुलती । मनुष्य जिस राग, मिथ्यात्व और माया से जुड़ा हुआ है, उससे छूट नहीं पाता। इसीलिए तो कहता हूँ कि व्यक्ति की सारी जिन्दगी अनित्यता की गोद में पल रही है। मनुष्य का पहला धर्म यही है कि जिनके साथ वह अपनी जिन्दगी को साधे, उनके बीच रहते हुए भी जिन्दगी में लगने वाली ठोकरों से जागे। उनसे अनुभव पाए समझ को परिपक्व बनाए। उस अनुभव के ज्ञान को ही असली ज्ञान और सम्यग् ज्ञान समझो। जब तक संसार मीठा, मधुर और सुन्दर लग रहा है वहाँ तक उसमें से छुटने की इच्छा नहीं होगी। कारागृह को ही महल समझा जाये, बेड़ियों को ही आभूषण समझा जाये तो उन्हें छोड़ा कैसे जायेगा? । संसार की विचित्रता को तो देखो। कहीं विशाल साम्राज्य है। तो कहीं धन का अंश भी नहीं। कहीं सुन्दर शरीर तो कही कुरूप काया । कहीं हास्य! तो कहीं रूदन! कहीं शादी के मंगल गीत! तो कही मातम्! ऐसे संसार से निर्वेद न हो यही तो आश्चर्य है। ज्ञानि कहते हैं, स्वार्थमय संसार है। यद्यपि इस संसार में खून के 135 For Private And Personal Use Only

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