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समझकर अपने ही विचारों को आचरण में लाकर सुखी होने के सपने देखते है, पर उन्हें मालुम नहीं है कि उनमें पूर्ण ज्ञान नहीं है। उन्हें मालुम नहीं है कि उनका सोचा हुआ मार्ग उन्हें भटकायेगा, दुःखी करेगा। हमारे जो भी विचार हैं, वे राग-द्वेषादि से युक्त हैं। अतः वे अधुरे है। हमारी हठता, कुमति और दुराग्रह छोड़कर जिनेश्वर के वचनों पर श्रद्धा करनी चाहिए। हम एक एक भव में भटक रहें। उसमें से छुटने का उपाय परमात्मा बताते हैं। तारक के शिवा सत्य मार्ग कोई नहीं दिखाएगा। दुनिया में स्वार्थी मतलबी और अस्थायी क्षणिक सुख देने वाले मिलते हैं, परन्तु सर्वांशतः सुखशांति का मार्ग दिखाने वाले तो तीर्थकर के अलावा कोई नहीं बतायेगा और सम्यक्त्व प्राप्त हुए बिना वह सत्य भी नहीं लगेगा। बहुतों के भक्त बनें, कइयों के अनुयायी बने, और अनेकों के मेम्बर भी बने, किन्तु शांति नहीं मिली। क्यु? क्योंकि, जिनेश्वर का अनुयायी नहीं बना। सम्यक्त्व तो रत्न हैं। जिस भव में सम्यक्त्व मिलता है उसी भव से तीर्थकरं देवों के भवों की गिनती होती है। सम्यग्दर्शन बिना नवपूर्वी भी अज्ञानी कहा जाता
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समकित विण नवपूरवी, अज्ञानी कहेवाय।
समकित विण संसारमां, आमतेम अथड़ाय॥ समकित बिन नवपूर्वी भी यहाँ-वहाँ भटकता है। समकित बिना का जीव झूठी कल्पनाएँ करता रहता है। एक आदमी लेटा हुआ था। उसके पेट के उपर से एक चींटी गुजर गई। और वह आदमी जोर से चिल्ला उठा बचाओं..... ...बचा..... मैं मर गया..... अभी ही मैं कुचला जाऊंगा....... घर के और
आस-पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गये। ये आदमी तो सलामत हैं, तो फिर चिल्लाने का- चिखने का कारण क्या? उस आदमी ने कहा मेरे पेट के उपर से चींटी गुजर गई। तो फिर इतने से ही कुचल जाने की बात क्यों की? वह आदमी कहता है, पेट के उपर से चींटी चली गई, कल चींटा जायेगा। फिर गाय भैंस जाएंगी यूं मेरा पेट तो नेशनल हाइवे बन जाएगा, उसके बाद तो ट्रक आयेंगे और जायेंगे। तुम ही बताओं अगर ट्रक जायेंगे और आयेंगे तो मैं मर
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