Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाता है। वह अंतरात्मा है। वह संसार में पैदा हुआ है, मगर संसार से उपर उठा हुआ है। (3) तीसरी दशा जब आदमी कीचड़ से अलग हो जाता है। उस दशा का नाम है परमात्मा । हम कौनसी दशा में जी रहे हैं, हम खुद को तोलें। पुंडरिक और कंडरिक दोनों भाई थे। दोनों को चारित्र लेने की इच्छा हुई। अंततः कंडरिक ने पुंडरिक को समझाकर प्रबल वैराग्य से दीक्षा ली। हजार वर्ष तक संयम जीवन का अद्भूत पालन किया। कड़े और उग्र तप करके शरीर को कृश बना दिया। शरीर रोगों का घर बन गया। पुंडरिक आग्रह करके गुरू की आज्ञा से भाई महाराज को अपने राज्य में ले आया। शरीर को व्यवस्थित/ठीकठाक करने के लिए प्रतिदिन स्निग्ध भोजन दिया जाने लगा। शरीर तो ठीक हो गया परन्तु आत्मा बिगड़ गई। आत्मा केन्द्र बिन्दु में थी वहाँ अब शरीर केन्द्र स्थान में हो गया। उन्हें अब साधुता में नही सांसारिक सुखों में आनंद आने लगा। वर्षों तक साधु जीवन में रहे थे उसका त्याग कर दिया, अंत में मरकर उनकी आत्मा सातवीं नरक में चली गई। ऊँचे स्थान में रहने पर भी नीचे स्थान आये तो उन्हें नीचे स्थान में जाना पडा। कंडरिक मुनि को भाई पुंडरिक ने बहुत समझाया फिर भी वे नहीं माने तब, कंडरिक को राज्य सौंपकर खुद संयम के मार्ग पर चल पड़े। सुकुमार शरीर होने से वे संयम जीवन की प्रतिकूलताओं को अधिक नहीं सह पाये, किन्तु साधना के केन्द्र स्थान में "शरीर" नहीं था परन्तु "आत्मा" थी केवल तीन ही दिन की साधना करके पुंडरिक कालधर्म प्राप्त कर अनुत्तर विमान में चले गये। बहिरात्मदशा के कारण कंडरिक मुनि का पतन हुआ और उनकी दुर्गति हुई जबकि अंतरात्मदशा के कारण पुंडरिक मुनि का देवलोक में जाना हुआ। किसी ने एक युवक से पूछा- तुम क्या करते हो? उसने कहा- जी मैं पढ़ता हूँ। फिर पूछा- पढ़ते क्यों हो? उसने कहा- पास होने के लिए। पूछने वाले ने पूछा- पास क्यों होना चाहते हो? उसने कहा प्रमाण पत्र पाने के लिए। पूछने वाला पूछता ही जा रहा है। प्रश्नकार ने पूछा- प्रमाण पत्र क्यों चाहते For Private And Personal Use Only

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