Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 179
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वास्यो न प्रमादरिपुः "प्रमादरूपी शत्रु का भरोसा मत करो" प्रत्येक मनुष्य को जिन्दगी में आगे बढ़ने की इच्छा तो प्रबल होती है, परन्तु उसे प्रगति करने से अटकाने वाले अनेक दोष जिम्मेदार है। ये दोष उसकी जिन्दगी में बम्प बनकर बीच में आते हैं। उन अनेक दोषों में से एक दोष है...... विलंबवृत्ति। इस विलंबवृत्ति के कारण ही अच्छे-अच्छे भी सफलता और सिद्धि से वंचित रह जाते हैं। जहां विलंब आयेगा वहाँ आलस आये बिना नहीं रह सकती। विलंब और आलस में अच्छी पटती है। आलस आने के बाद सुस्ती घर कर जाती है। सुस्ती के आश्लेशण में एक बार जकड़ जाने के बाद मन आसानी से छुट नहीं सकता है। इससे उसकी विकास यात्रा को पेरालिसीस लग जाता है। विलंबवृत्ति धारक लोगों का प्यारों मे प्यारा शब्द है .. ...... कल । ऐसे लोगों के अधिक कार्य तो कल की खींटी पर ही टंगे रहते है। काम को कल पर टालना मतलब उसे टूटे-फूटे माल सामान रखने के तलघर में धकेल दिया ऐसा कहा जा सकता है। कल मतलब अकर्मण्यता काम नहीं करने की वृत्ति। किसी ने विलंब की असुर के साथ तुलना की है। असुर यानी राक्षस । जैसे बकासुर आदमियों को निगल जाता हैं वैसे विलंबासुर अब तक कितने ही लोगों के उज्वल भविष्य को निगल गया है। विलंबासुर का साथी कालासुर। विलंबासुर आदमी को कालासुर की ओर धकेल देता है कालासुर के मुँह में कितनी ही सुंदर योजनाएँ समाप्त हो गई है। कबीर ने मजेदार बात कही है..... "दो कल के बीच काल है, होशके तो आज संभाल" हमें एक काम अवश्य करना चाहिए, नहीं करने योग्य काम को विलंब में रखना चाहिए और करने योग काम को आज पर ही लेना चाहिए। जीवन में सफल बनने के लिए सतत/निरंतर काम करते रहो। आज का काम कल पर कभी मत टालो। क्योंकि कल कभी आता नहीं है। उपनिषद् का एक मजेदार वाक्य है। उत्तिष्ठत, जान.....यहाँ इस वाक्य में पहले उठो और बाद में जागने को -173 For Private And Personal Use Only

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