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में शेठ की नजर चोर पर पड़ गई । उसने चोर को पकड़ लिया और सजा दिलाने राज-दरबार में ले गया। दरबार में राजा ने चोर को कहा कि तू चोरी नहीं कर पाया, मगर चोरी का प्रयास तो किया ही है। अब तू ही बता दे कि तुझे क्या सजा दि जाए? चोर बोला अन्नदाता । आप जो दण्ड देना चाहे, दे दें मगर दो दो औरतों के साथ मेरी शादी मत करवाइएगा। चोर ने रात की सारी घटना बयान कर दी। कहने का तात्पर्य यही है कि आये दिन स्वार्थमय संसार के दर्शन होते रहते हैं फिर भी इस सासर में मन लग जाता है। सुअर जैसे विष्टा में आसक्त बना रहता है, वैसे मनुष्य भी संसार की माया जाल में ही मग्न होते
हैं।
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