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राग भाव नष्ट हो जाएगा। इसके सम्पर्क में आने वाली हर वस्तु तुच्छ हो जाती है। इस माटी की देह में इतना आकर्षण! इतना राग! मल्लिकुमारी के शब्दों ने उन राजकुमारों पर जादुई असर किया, क्योंकि उनके शब्द राजकुमारों के हृदय को छेदने वाले तीखे तीरों जैसे थे। तत्क्षण उनका राग भाव दूर हो गया। उनकी आत्मा जागृत हुई। लौट गए वे सभी काम विजयी भावनाओं के साथ। उनके पैर फिर अपने राज्यों की तरफ नहीं बढ़े, वरन् जंगल की ओर बढ़े, आत्मस्वरूप का परिचय पाने के लिए । मल्लिकुमारी भी दीक्षा ले लेती है। उसे केवल ज्ञान प्राप्त होता है और ये राजा भी उन्हीं के शिष्य बनते है। मानव देह अशुचि का भंडार ही है। गंदगी का ढेर है। जिस स्त्री देह के प्रति मन में तीव्र आकर्षण होता है, उस स्त्री देह के भीतर रहे तत्त्वों को यदि बाहर प्रगट किया जाय तो तुरंत ही भौं सिकोड़ने के शिवाय दूसरा काम नहीं करेंगे। देह राग को तोड़ने के लिए देह की अशुचि का चिंतन सर्वोत्तम है। ज्यों-ज्यों देह की अशुचिता का विचार करते जाते हैं, त्यों-त्यों देह के प्रति रहा राग – भाव कम होता जाता है। अशुचिभाव का चिंतन हमारे वैराग्य भाव को पुष्ट करता है। दुनिया में कई तरह के कारखाने होते हैं, उन कारखानों में बहुत ही आकर्षक और सुंदर वस्तुएँ बनती है। परंतु यदि उन सभी आकर्षक वस्तुओं के कच्चे माल को देखा जाय तो वह दिखने में बिभत्स-कुत्सित व खराब ही होता है। कारखाने में रही मशीनों में तैयार हुआ कपडा कितना आकर्षक लगता हैं, परन्तु उन कपड़ों का मूल तो सामान्य कपास ही होता है। मशीन में तैयार हुआ कागज बड़ा ही सुंदर दिखता है, परंतु उसका मूल पदार्थ घास–पत्ते इत्यादि देखे जाए तो उस पर कोई आकर्षण नहीं होता है। मशीन में तैयार हुई घड़ी बड़ी मोहक लगती है, परंतु उसी घड़ी का मूल पदार्थ लोहा अगर देखा जाय तो उस पर कोई आकर्षण नहीं होता है। इससे सिद्ध होता है कि दुनिया के सभी कारखानें कच्चे माल को पक्के माल में बदलते हैं जबकि हमारा शरीर एक ऐसा कारखाना है जो पक्के माल को कच्चे माल में बदलता है। अच्छे पदार्थ को बुरे पदार्थ में बदलता है। इस शरीर में कुछ भी डालें, अच्छी से अच्छी मिठाई या पकवान डालें फिर भी उसे बिगाड़े बिना और दुर्गन्ध युक्त बनाये बिना नहीं
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