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में ले जाता है। दिन भर की मेहनत के बाद समय मिलता है, हम अखबार पढ़ते हैं, टी.वी. देखते हैं। उस कारण एकान्त संभव नहीं हो पाता । वक्त मिलता है, मित्रों से मिलते है, नाटक, सिनेमा, हॉटल या क्लब वहाँ भी अकेले नहीं होते। थकते हैं तो सो जाते है। सुबह फिर वही दुनिया शुरू होती है । ख्याल रहे जो श्रेष्ठतम् चीजों का निर्माण हुआ वह एक एकान्त में हुआ है। भीड़ में नहीं, भीड़ ने अब तक महान् कार्य नहीं किये, जो भी महान कार्य हुए जिन्होंन किये वे एकान्त में हुए हैं भीड़ ने दुष्कर्म किये है, मारपीट की है, हत्याएँ की है, युद्ध किये है, बुरे काम किये है, खून किये है, आग लगाई है। योगी और भोगी दोनों को एकान्त चाहिए, परन्तु योगी एकान्त पाकर कर्मक्षय करता है जबकि भोगी कर्मबंधन करता है। योगी के वास्ते एकान्त अच्छा और महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ज्ञानियों ने कहा है योगी के लिए लोकसंपर्क खतरनाक है। जो नाम चाहता है, सत्तापाना चाहता है उसके लिए तो लोकसंपर्क जरूरी है, लोक संपर्क के बिना वह वैसा नहीं कर पाएगा, परन्तु आत्मसत्ता पाने की इच्छा रखने वालों को तो लोक संपर्क / भीड़ से हट कर रहना चाहिए। योगी और सामान्य इंसान/मनुष्य में, भारी अंतर है कि मैं लोगों से दूर रहूँ, लोग मुझसे दूर रहे तो अच्छा है, मेरे पास न आये तो अच्छा। क्योंकि मुझे इनसे क्या मतलब! मेरा रास्ता अलग और इनका रास्ता अलग, मुझे कुछ और पाना है और इनकी चाह कुछ और है, मुझे जो पाना है उसके लिए मुझे मुझमें ही खोना पड़ेगा लोगों में नहीं अतः जितना अकेले में रहूँ उतना ही अच्छा। और सामान्य इनसान चाहता है कि जितने अधिक लोग मेरे पास आये उतना ही अच्छा। फिर भी बड़े आश्चर्य कि बात है कि जो चाहता है लोग उसके पास नहीं जाते और नहीं चाहने वाले योगी के पास लोगों की भीड़ जमा होती है। हमारे बड़े गुरूजी बहुत बार कहा करते हैं कि लोकसंपर्क में लिप्त मत होओ, दूरी बनाकर रखो, लोकसंपर्क में जाने से तुम अपनी आराधना और अपनी मस्ती खो बैठोगे जो निजमस्ती का आनंद है उसमें मस्त रहो अपनी आराधना ज्ञान, ध्यान और स्वाध्याय में समय का पूरा-पूरा योगदान दो। जिस मकसद से तुमने संयम
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