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किताब (ग्रन्थ) में एक जगह लिखा था कि सभी के लिए एकान्त बुरी में बुरी चीज है। जैमीनी ने यह वाक्य पढ़ा तो सोचने लगा कि गुरूजी की यह बात ठीक नहीं है। गुरू की बात को उत्थापने के लिए तत्पर हुआ। गुरू को कहता है कि एकान्त बुरी चीज नहीं है इसलिए यह बात निकाल दो। गुरू ने कहा जब तक मोहनीय कर्म जायेगा नहीं वहाँ तक यह बात सभी को लागु होती है। दशवैकालिक सूत्र के आठवें अध्याय की त्रेपनवीं (53) गाथा में कहा है किहत्थपाय पडिछिन्नं, कण्णनास विगप्पियं । अविवासस्यं नारिं, बंभयारि विवज्जए ।।
जिस स्त्री के हाथ पाँव कटे हुए हो, कान नाक तूटी हुई हो तो ऐसी स्त्री के साथ भी ब्रह्मचारी को एकान्त में रहने का शास्त्रकारों ने निषेध किया है । अन्य जगह पर कहा हैं- "चित्तभित ं न निज्जाए" जैसे सूर्य के सामने दृष्टि जाने से तुरंत ही वापस खींच लेते है वैसे ही विकारी चल चित्रों पर भी नजर चली जाय तो नजर को वापिस खींच लेना । यदि पतन से बचना हो तो शास्त्र की बातों का स्वीकार करना चाहिए। साधक के लिए शास्त्रों में अनेक जगह रेड़सिग्नल दिये है। गुरू वेदव्यासजी कहते हैं कि यह बात ज्ञानी-ध्यानी, त्यागी, तपस्वी सभी को लागु हो रही है। एकान्त सचमुच बुरा है। यह वाक्य निकाल नहीं सकते। जैमीनी कहते हैं कि यह बात मेरे लिए लागु नहीं होती है। गुरू ने बहुत समझाया फिर भी गुरु की बात को स्वीकारने के लिए तैयार नही हुए। गुरू को कहते हैं कि यदि मुझमें विश्वास नहीं है तो मेरी परीक्षा लिजिए लेकिन इस वाक्य को हटा दिजिये। गुरू के पास ज्ञान है, शक्ति है, रूप परीवर्तन करने की शक्ति / कला है। गुरु ने सोचा इसे अनुभव से ज्ञान होगा। बातों से नहीं समझेगा । कुछ दिन गुजरने के बाद वर्षाऋतु आई । जैमीनी अपने आश्रम में ठहरा है । झमाझम बरसात हो रही है। चारों तरफ पानी-पानी हो गया हैं, उस समय एक रूपवती जवान स्त्री जो पानी से संपूर्ण भीग चुकी है। वह जैमीनी के आश्रम से आश्रय चाहती है । हाव-भाव नखरें करती हुई, कहती है कि मुझे मेरे पति ने घर से निकाल दिया हैं अभी इस
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