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कनेक्शन न हो तो प्रकाश देगा? नहीं, परमात्मा पॉवर हाउस तुल्य है। आत्मा को प्रकाशित करने के लिए परमात्मा से भक्ति का कनेक्शन जोड़ना अनिवार्य है, अगर तार जोड़ दिया जायेगा तो आत्मा शीघ्र प्रकाशित हो जाएगी। प्रभु-भक्ति उपसर्गों को हरने वाली, विघ्नों को हटाने वाली और चित्त की प्रसन्नता लाने वाली है, आगम शास्त्रों में सिर्फ लिखने के लिए ही नहीं लिखा है, इस वास्तविकता का हम खुद भी अनुभव कर सकते हैं । भक्ति से क्या नहीं होता यह एक सवाल है। भक्ति से भक्त खुद भगवान बन जाता है। भक्ति के द्वारा तीर्थकर पद भी मिलता है तो ओर चीजों की तो क्या बात करें। कृष्ण और श्रेणिक महाराजा जिन्होंने प्रभु से प्रेम करते हुए क्षायिक सम्यक्त्व और तीर्थकर नामकर्म प्राप्त कर लिया। सुलसा श्राविकाने भी प्रभु भक्ति से भविष्य में तीर्थकर बनने का अधिकार उपलब्ध कर लिया। देवपाल भी प्रभुभक्ति से ही तीर्थकर बनने का सौभाग्य प्राप्त करेगा। रावण ने भी प्रभु भक्ति से ही तीर्थंकर पद पाने का अवसर प्राप्त किया। नागकेतु ने प्रभु की पुष्प पुजा से केवल ज्ञान पाया। कुमारपाल राजा ने अठारह पुष्पों की पूजा से अठारह देश पाये थे।
एक महिला ने सुनार से नथनी बनाने के लिए कहा। सुनार ने एक सुन्दर सी नथनी बना दी। नथनी बहुत ही अद्भूत थी। वह महिला नथनी को पाकर नाच उठी, बहुत खुश हुई, कारण कि उसकी मनोकामना पूरी हो गई थी। उसे अभिलषित वस्तु मिल गई थी। उसने उचित पारिश्रमिक देकर सुनार का सम्मान किया । अब वह महिला हमेशा उस सुनार का गुणगान गाने लगी। एक दिन वह सुनार का गुणगान कर रही थी। एक संत ने सुना और पूछा-"किसका गुणगान कर रही हो'? वह बोलीं- यह देखो न! जिसने यह सुन्दर नथनी बनाई है, उसी सुनार का गुणगान कर रही हूँ। संत ने कहाअरी पगली! जिसने तुझे नाक दी उसका तो तू गुणगान नहीं कर रही और नथनी बनाने वाले का गुणगान कर रही है। अरी! बावली! तू उसका गुणगान कर जिसने तुझे नाक दी है। भाग्यशालियों! यही हालत आपकी और हमारी
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