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खड़ी थी...... किन्तु मौत से वे भयभीत नहीं हुए। क्योंकि उन्होंने जीवन की यथार्थता को जान लिया था। जिन धर्म ने उन्हें निर्भय बना दिया था। जिस आनंद कुमार को सिंह राजा ने बड़े प्रेम से पाला-पोषा था, वही आनंद कुमार जबरन राज्य छीनकर पिता को जेल में डाल देता है, इतना ही नहीं उनकी हत्या भी कर देता है। कारण इतना ही था कि उसे राजसिंहासन प्राप्त करना था।
मुझे याद आती है उस मणिरथ की, जो छोटे भाई युगबाहु की पत्नी मदन रेखा को पाना चाहता था, अपनी बनाना चाहता था, अपने मोहजाल में फँसाना चाहता था, परन्तु मदन रेखा महासती थी। जिनका नाम भरहेसर की सज्झाय में आता है, जिनका स्मरण किये बिना हम साधु-साध्वी, अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। बड़ा भाई मणिरथ सोच रहा था कि जब तक युगबाहु जिन्दा रहेगा वहाँ तक मदन रेखा मेरी हो न सकेगी। अतः मौका देखकर छोटे भाई युगबाहु को ही खत्म कर दूँ । वह कितने ही दिनों से मौके की तलाश में था। आखिरकार एक दिन मणिरथ को वह मौका मिल ही गया, वह छोटे भाई के पेट में छूरी भौक कर भाग गया। युगबाहु पत्ते की तरह जमीन पर गिर पड़े।
और यह देखकर मदन रेखा वहाँ दौड पडी ओर पति युगबाहु की स्थिति देखकर बड़ा ही आघात लगा। वहाँ विलाप और रूदन की जगह पर अपने को सम्हालते हुए पति की देह को अपनी गोद में लेकर बैठ गई। क्रोध के आवेश में मेरे स्वामी की दुर्गति न हो जाय, अतः मुझे इनकी आत्मसमाधि के लिए प्रयत्न करना चाहिए। प्रेरणाओं के सरोवर में डूबकर युगबाहु की आत्माने समाधिपूर्वक देहत्याग करके ब्रह्मदेवलोक को प्राप्त किया। पति की समाधि मृत्यु का श्रेय महासती मदन रेखा को ही जाता है। कारण इतना ही था कि मणिरथ मदन रेखा के रूप में पागल बन गया था। उस विषयांधता के कारण ही उसने भाई का खून किया था।
मुझे याद आती है अमर कुमार की, गरीब भद्रा बाझैणी ने अपने ही पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए चाँदी के कुछ टुकड़ों के बदले में बेच दिया था। किंतु
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