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काटना चालु ही रहा रूका नहीं। उसी समय फकीर वहाँ आ पहुँचे। शिष्य ने उनसे कहा गुरूदेव । यह कैसा विचित्र आदमी है। बैठने के लिए आसन, गुदडी, खटिया बिछायी, परन्तु बैठता ही नहीं है....... और चक्कर ही काटे जा रहा है। गुरू ने कहा यह सामान्य आदमी नहीं है। ये तो बादशाह है बादशाह! बदशाह को बैठने के लिए सिंहासन चाहिए। सिंहासन के बिना ये कहीं नहीं बैठेंगे। तू नीचे के तलघर में जा और जल्दि से सिंहासन ले आ। सिंहासन आते ही बादशाह वहाँ बैठ गये। उसका चक्कर काटना बंद हो गया। अपना मन भी बादशाह है। परमात्मा के चरण रूप सिंहासन नहीं मिलेगा वहाँ तक चक्कर ही काटता रहेगा। जिस दिन प्रभु के चरण का सिंहासन मिलेगा मन वहां जरूर बैठेगा जरूर बैठेगा।
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