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दिन पुत्रवधू से पूछा, बोल बेटा! कल मेरे अट्ठाई का पारणा है तो मेरे लिए क्या बनाएगी? बहु ने कहा, मम्मी! कल मैं आपकी फेवरीट आइटम बनाउंगी। सासु ने पूछा, तुझे पता है..... मेरी फेवरीट क्या है? बहु ने कहा, हां मम्मी! आपकी फेवरीट आइटम रोटी और आलु प्याज की सब्जी। अतः कल सुबह मैं आपके लिए वही बनाऊंगी। कहने का मतलब इतना ही है। बाहर का आदमी कभी दान-धर्म-तप धर्म करता दिखता है उस धर्म को करने के पीछे भी अपना नाम हो ऐसी इच्छा लोक प्रशंसा मिले ऐसी वृत्ति हुआ करती है, अन्यथा भीतर के आदमी को तो खाने पीने, मौज-शौक और भोग सुख में ही मजा आता है। भीतर के बिगडे हुए आदमी को सुधारने के लिए बाहर के आदमी को सुधरना पडेगा। बाहय आचरण सुधरेगा तो भीतर के विचार सुधरे बिना नहीं रहेंगे। जो लोग आचार में परिवर्तन लाये बगैर मात्र विचारों में परिवर्तन लाने की बात करते है वे दंभी है। मुझे रसगुल्ले और रसपुरी खाने में रस नहीं है ऐसा कहकर मौका मिलने पर नहीं चूकने वाले को दंभी न कहे तो ओर क्या कहें? दंभ यानी व्यवहार से दूसरे को ठगने की क्रिया परन्तु निश्चय से खुद को ही ठगने की क्रिया है। यह मत भूलना। दंभ यानी दिखावा करने की वृत्ति । खुद में कुछ भी न हो फिर भी अधिक दिखाने की वृत्ति दंभ को जन्म देती है। मैं योगी न होउं, परन्तु योगी जैसा दिखना है या योगी रूप में प्रख्यात होना है तो क्या करना होगा? योगी जैसा दिखावा करना होगा। अंदर चाहे योगी जैसा कुछ भी न हो, परन्तु बाहर योगी का आडंबर अपनाना पडेगा। झूठा प्रचार करके लोगों में ऐसी हवा फैलाने का प्रयास करना पड़ेगा। इसी का नाम दंभ है। यह आत्मवंचना है, खुद से ही खुद की ठगाई है, पाखंड है। जो आदमी खुद को ही ठगता हो दुनिया में उससे बढ़कर धूर्त कौन होगा। योगशास्त्र में हेमचन्द्रसूरिजी महाराज कहते हैं- "भुवनं वाचमाना वाचमाना वञचयन्ते स्वमेव ही' जगत को ठगने वाले लोग आखिर तो खुद को ही ठग रहे है।
कबीर ने भी कहा
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