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शौचम्
"पवित्रता रखनी "
एक घटना के माध्यम से अपनी बात प्रारम्भ करता हूँ, क्योंकि घटना एक सेतु है, आपके दिल तक पहुँचने का । प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कोई न कोई घटना अवश्य घटती है, जो उसके लिए प्रेरणा भी बनती है, निराशा भी । लेकिन यह घटना आपके लिए प्रेरणादायक सिद्ध होगी शौचम् को समझने और अशौचम को छोड़ने के लिए।
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एक देहाती था, बिल्कुल भोला-भाला, सीधा-सादा । ध्यान रखियेगा भोले आदमी और सीधे आदमी में फर्क होता है। या तो समझ विहीन आदमी सीधा होता है या पूर्ण समझदार आदमी सीधा होता है। भोला आदमी बाहर से सीधा नजर आता है, पर भीतर से मौके की तलाश में रहता है, सीधा आदमी जो करना होता है तत्क्षण कर देता है, या करने का संकल्प कर लेता है, पर भोला आदमी अवसर की तलाश में रहता है।
वह देहाती था। उसने बम्बई का नाम बहुत सुना था तो उसे हुआ कि एक बार बम्बई की सैर कर आये, देखे तो सही वहाँ कितने बड़े होटल है, कितनी बड़ी इमारते है, डबलडेकर बस कैसी होती है। वह बम्बई देखने चला । बम्बई पहुँचा तो, वहाँ के रंग-रोगन को बड़ी-बड़ी बहु मंजिला इमारतों को बड़ी-बड़ी गाड़ियों, बस, जीप, मोटर कार समुद्र और लोगों की चहल-पहल को देखता है तो विस्मय से भर जाता है। ये क्या? इतने सारे झुंड के झुंड तो हमारे गाँव में गाय भैंसों के निकलते हैं। यहाँ मोटर कारों गाड़ियों के झुंड है। वह देखता हुआ और सोचता हुआ आगे बढ़ रहा था, आगे उसे एक हॉटल नजर आया तो उसने सोचा देहात में ऐसा हॉटल कहाँ, चलो आज इस होटल में रोटी की बजाय पकवान खाये जाये । वह सभी हॉटलों में जाता है और कुछ न कुछ खाता है। जैसे आप कहीं से गुजरते है, मुँह में कुछ भी डाल लेते है यह जानवर की प्रकृति है इंसान की नहीं । जैसे बकरी सभी जगह मुँह मारती है, कुत्ता सभी पदार्थो को सूंघता है उस प्रकार इंसान भी करता है। उस देहाती ने
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