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क्रोध कर के कहाँ से कहाँ चले गये। बाहुबलीजी ने एक वर्ष पर्यंत घोर तपश्चर्या की, लताएँ शरीर से लिपट गई, पक्षियों ने शरीर पे घोंसले बना दिये मकड़ियों ने जाले बना दिये, फिर भी ध्यान से विचलित न हुए। इतना तप, जप करते हुए भी केवल ज्ञान प्राप्त करने में मानकषाय के कारण विलंब हुआ।
___ मायाकषाय मल्लिकुमारी ने पूर्वभव में मित्र से माया की तो उस मायाकषाय ने स्त्री का अवतार दे दिया। धर्मराजा युधिष्ठर ने एक ही बार कहा- “अश्वत्थामा मृतः नरो वा कुंजरो वा' ऐसा कपट भरा वचन बोलने से सदैव जमीन से उपर उठकर रहने वाला उनका रथ जमीन पर आ गया।
लोभकषायः से क्या हालत होती है यह भी सुन लिजिये, एक राजकुमारी वैराग्य वासित हो कर दीक्षा के लिए तत्पर हुई, दीक्षा भी ली परंतु अपने पास रहे रत्नों का मोह छुटा नहीं था। दीक्षा तो ली परन्तु रत्न भी साथ रख लिए। इसकी जानकारी किसी को भी नहीं होने दी। नित्य उन रत्नों को देखकर खुश होती है, उनकी आसक्ति अंतिम समय भी नहीं छुटी, परिणाम मरकर छिपकली बनना पड़ा। मम्मण शेठ भी लोभकषाय के कारण ही मरकर सातवीं नरक में चले गये। तो कषाय करके आत्मा को अपवित्र करके दुर्गति के मेहमान मत बनों।
आत्मा नदीसंयमतोयपूर्णा। तत्राभिषेकं कुरूपाण्डुपुत्र।
नवारिणाशुद्ध्यति चान्तरात्मा। अजैन महाभारत की एक घटना है। पाँच पांडव अड़सठ तीर्थो की यात्रा के लिए निकल रहे थे। माँ कुंती ने कड़वी तुंबड़ी देकर कहा। तुम अड़सठ तीर्थों की यात्रा के लिए जाने वाले हो। तुम एक काम जरूर कारना प्रत्येक तीर्थ में तुम स्नान करोगे तब इस तुंबी को भी स्नान करवाना । माँ की बात का स्वीकार करके वे अड़सठ तीर्थों की यात्रा के लिए निकल पड़े। हर तीर्थ में उन्होंने स्नान किया और तुंबी को भी हर तीर्थ में स्नान कराते रहे।
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