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बात है पवित्रता की। पवित्रता तीन प्रकार की है (1) शारीरिक (2) वाचिक और (3) मानसिक। शारीरिक पवित्रता रखना सरल है। केवल स्नानादि से कोई भी प्राप्त कर सकते है। शरीर पर पानी डालो साबु सेम्पु लगाओ। फिर शरीर को घिसो मेल पसीना दुर्गन्ध चली जायेगी। नाक साफ कर लो, ब्रस कर लो, मंजन कर लो, नाखुन से मेल निकाल लो हो गये पवित्र आपकी भाषा में पवित्रता आ जाएगी । अंग्रेज वह भी मुश्किल से करते है सिर्फ हाथ मुँह धोये पाउडर, सेन्ट लगाया और पवित्र हो गये बड़ा आसाना है शारीरिक पवित्रता को प्राप्त करना। मैं कह रहा हूँ काया की पवित्रता की बात । एक शुभाषित में कहा हैं
कुचेलिनं दंतमलावधारिणं, बह्वासिनं निष्ठुर वाग्भाषिणम्। सूर्योदये चास्तमने चशायिनं,
विमुञचतिश्रीर्यदिचक्रपाणिनम्।। आदमी अगर विष्णु जैसा महान् हो......! परन्तु गंदे वस्त्र पहनने वाला हो गंदे दांत रखता हो.... बहुत आहारी (अधिक खाने वाला) हो ......... सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोने वाला हो.... ऐसे को लक्ष्मी छोड़ चलती है। अतः वस्त्रादि को भी साफ और पवित्र रखिये।।
एकेन्द्रिय अवस्था में सिर्फ काया मिलती है। अकेली काया से पूर्व करोड़ वर्ष का आयुष्य बंधता है : विकलेन्द्रिय अर्थात् द्विन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय भी पूर्व करोड़ वर्ष का बांधते है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय उत्कृष्ट से पल्योपम का असंख्यतवाँ भाग जितना बांधते हैं, जबकि संज्ञी पंचेन्द्रिय उत्कृष्ट से तेत्तीस सागरोपम का आयुष्य बांधते है। ऐसे मन वचन और काय योग हमें प्राप्त हुए है। इस योग का उपयोग हम किस तरह कर रहे हैं? काय योग कपड़े के व्यापार जैसा है। वचन योग मोती के व्यापार जैसा है और मन योग हीरे के व्यापार जैसा है। कपड़े के व्यापार में महेनत ज्यादा परंतु कमाई कम, मोती
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