________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1
जाएँ क्या करें, कैसे जिएं, एक प्यासा आदमी पूछता है, पानी कहाँ हैं, यह जिज्ञासा नहीं हैं, जिसको प्यास लगी है वह सरोवर चाहता है । किन्हीं लोगों को सामने से चलकर बात-बात में प्रश्न पूछने की आदत होती है। एक जानी मानी महिला वक्ता महिला उत्थान के सम्बन्ध में भाषण दे रही थी । जोश में T कहने लगी, मैं पूछती हूँ-यदि स्त्री न होती तो ये पुरूष कहाँ होते ? पीछे से आवाज आई स्वर्ग में। कुछ लोग सिर्फ अपनी हुशियारी बताने के लिए पूछते रहते हैं वह भी उधार और मुर्दा प्रश्न होते हैं । मार्पा अपने गुरू के पास गया, I नारोपा के पास । तो तिब्बत में रिवाज था कि सात परिक्रमाऐं की जायें फिर सात बार उनके चरण छुये जायें, सिर रखा जाएं, फिर साष्टांग लेटकर प्रणाम किया जाएं, जैसे खमासमण सूत्र में बताये अर्थ के अनुसार पंचाग प्रणिपात का अर्थ होता है कि इस सूत्र को बोलते समय अन्त में जब मत्त्थएण वन्दामि शब्द आये तब हमारे पांच अंग (1) दो घुटने (2) दो हाथ (3) मस्तक जमीन को छूने चाहिए। इसे कहते है पंचाग प्रणिपात सूत्र । फिर प्रश्न निवेदन किया जाए लेकिन मार्पा सीधा पहुँचा। जाकर गुरू की गर्दन पकड़ ली और कहा कि यह सवाल है। नारोपा ने कहा कि मार्पा, कुछ तो शिष्टता बरत, यह भी कोई ढंग है ? परिक्रमा कर दंडवत् कर विधि से बैठ। जब में कहूँ कि पूछ तब पूछ । लेकिन मार्पा ने कहा जीवन है अल्प। और कोई भरोसा नहीं कि सात परिक्रमाएं पूरी हो जावें । और अगर मैं बीच में मर जाउं तो नरोपा, जिम्मेवारी मेरी कि तुम्हारी? तो नरोपा ने कहा कि छोड़ परिक्रमा पूछ ही ले। परिक्रमा पीछे कर लेना । नरोपा ने कहा है कि मार्पा जैसा शिष्य फिर नहीं आया। यह कोई कुतूहल न था, यह कोई अपनी डेढ़ हुशियारी नहीं थी, यह कोई ज्ञान का प्रदर्शन नहीं था, यह तो जीवन का सवाल था । यह ऐसे ही पूछने नहीं चला आया था। जिंदगी दांव पर होती है तब गहरी जिज्ञासा होती है। और जब ऐसी खुजलाहट होती है दिमाग की तब कुतूहल होता है। प्रश्न भीतरी जिज्ञासा को दर्शाते हैं। स्वाध्याय के पाँच प्रकार है। उस में दुसरा प्रकार "पृच्छना" है। पृच्छना अर्थात् प्रश्न। वाचना लेने के बाद प्रश्न पैदा न हो तो गुरु
को पता
86
For Private And Personal Use Only