________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
कैसे चलेगा कि शिष्य में जिज्ञासा है या नहीं। जिज्ञासा यानी जानने की समझने की इच्छा। यह जगत क्या है? कोई ज्ञानि तो कोई अज्ञानि क्यों है? मेरा स्वरूप क्या हैं? भविष्य में मुझे कैस बनना है? जो कर्म ज्ञान को ढ़ांके, ज्ञान का प्रकाश कम करे, ज्ञान पर आवरण डाले वह ज्ञानावरणीय कर्म कहलाता है। जैसे आंख में देखने की शक्ति है, लेकिन उस पर पट्टी बांध दी जाये तो वे देख नहीं सकती। उसि प्रकार आत्मा में सब-कुछ जानने की शक्ति होते हुए भी ज्ञानावरणीय कर्म के कारण जान नहीं सकती। ज्ञानावरणीय कर्म का जितना क्षयोपशम होता है, उतना ही आत्मा को ज्ञान होता है। उस से अधिक नहीं। क्षयोपशम का अर्थ । पानी में स्थित कचरा नाश को प्राप्त करता है तो क्षय है
और कचरा नीचे बैठ जाता है तो उपशम है। जिनको ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम कम होता है वह कम जानता है जिनका अधिक होता है वह अधिक जान सकता हैं। मनुष्यों में ज्ञान की जो इतनी बड़ी तरतमता दिखती है वह इस ज्ञानावरणीय कर्म के ही कारण है। ज्ञानावरणीय कर्म के उदय के कारण नहीं जान सकते कि मुझे किस कारण से ज्ञान चढ़ता नहीं है। याद किया हुआ क्यों भूल जाता हूँ। परन्तु जरूर कोई ऐसी बात हैं जिस कारण से बहुत रटने पर भी मुझे याद नहीं रहता है और अन्य को दो पाँच बार रटने से याद हो जाता है मेरा स्वरूप क्या है? वर्तमान में जो कुछ कर रहा हूँ वह मेरा स्वरूप नहीं है। जन्म-मरण मेरा स्वरूप नहीं है। अलग-अलग रूप धारण करना मेरा स्वरूप नहीं है। कोल्हू के बेल की तरह चारोंगति में घूमना मेरा स्वरूप नहीं है। कषायों से कुचलते रहना, वासनाओं में (खूप) डूब कर/ फंसकर रहना-मोह-ममता-माया करना मेरा स्वरूप नहीं है। मेरा असली स्वरूप है, शुद्ध, बुद्ध, अजर, अमर, उसे पाने के लिए तूं पुरूषार्थ कर । भविष्य में मुझे कैसा बनना है? इस प्रश्न के उत्तर में हमें अपने भविष्य का नक्सा तैयार करना है। नई इमारत का नक्सा है जो सुधारना हो सुधार सकते है । मैं भविष्य में व्रतधारी श्रावक बनने वाला हूँ, सज्जन, सदाचारी, साधु और अंत में सिद्ध बनने वाला हूँ। इस तरह आत्मचिंतन आत्मनिरीक्षण करता हुआ भयानक दुःख जनक
87
For Private And Personal Use Only