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उस घर को सहारा और अपना स्थान बना लेती है। घटनाएं छोटी हो या बड़ी, सामने वाला छोटा हो या बड़ा ये महत्त्वपूर्ण नहीं है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, परन्तु हम उसमें क्या देखते है और क्या ग्रहण करते है यह महत्त्वपूर्ण है। छोटों का महत्त्व नहीं होता, बड़ो का ही महत्त्व होता है ये विचार ठीक नहीं हैं। क्योंकि आंख छोटी सी है परन्तु विराट-आकाश को अपने में समा लेती है। अंकुश छोटा सा ही होता है परन्तु हाथी को वश में रख लेता है। चींटी छोटी ही होती है परन्त हाथी के भी प्राण ले सकती है। वज्र छोटा सा होता है परन्तु बड़े-बड़े पर्वतों को तोड़ डालता है। छोटी सी चिनगारी घास के ढेर को जला सकती है। छोटा सा छेद नाव को डूबो देता है। छोटा सा दिया बड़े खंड़ के अंधकार को भगा सकता है।
नन्द के राजवंश का नाश न करूं वहां तक मैं चोटी में गांठ नहीं लगाऊंगा। यह प्रण चन्द्र गुप्त ने किया था। फिर चन्द्रगुप्त ने चाण्यक के तत्त्वावधान में सेना का संगठन करना शुरू किया। धननन्द जैसे शक्तिशाली राजा से युद्ध करने के लिए एक शसक्त सेना संगठित करना जरूरी था। सैन्य संगठन के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने पाटलीपुत्र पर आक्रमण किया। पर उस प्रथम युद्ध में नन्द ने उसकी सेना को नष्ट कर दिया। अपनी भयंकर हार के पश्चात् चन्द्रगुप्त और चाणक्य को जंगलों और पहाड़ों में छुप-छुप कर अपने प्राणों की रक्षा करते हुए काफी समय तक इधर से उधर भटकना पड़ा। एक दिन की बात हैं, चाणक्य और चन्द्रगुप्त को पकड़ने के लिए उन्हें मारने के लिए सेना पीछे पड़ी थी जैसे तैसे भी दोनों सेना के हाथ से छिटक गए। शाम का समय हो गया था, झुरमुटा हो रहा था। गाँव की एक बुढ़िया माजी के घर पहुँचे। वे सोच रहे थे भूख तो लगी है अगर कुछ खाने को मिल जाय तो खाकर आगे भाग निकले। आये हुए अतिथि का सत्कार करना ये भारतीय परंपरा है। ये भारतीय परंपरा/संस्कृति है कि घर के दरवाजे पर आया हुआ दुश्मन भी हमारा अतिथि है, उसके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। भोजन का समय भी हो चूका था। दोनों गुप्त वेश में हैं किसी को पता नहीं है
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