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कोपोऽपि च निन्दया जनैः कतथा
"लोगों की निंदा से क्रोधित नहीं होना" गुर्जिएफ को किसी ने कहा- मिस्टर एक्स तुम्हारी निंदा कर रहा था। गुर्जिएफ ने कहा वो करता होगा। वह बोलता है तो उसे बोलने दो, निंदा करने से ही उसे खुशी होती हो तो करने दो निंदा करने से उसे पैसे मिलते होंगे तो करने दो, निंदा करने से उसका पेट भरता हो तो करने दो, निंदा करना ही उसका धंधा हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं। वह उसका धंधा जरूर करे उसे धंधा करने का पूरा अधिकार हैं। परन्तु मेरी निंदा एकदम रसभरपूर तरीके से सुननी हो तो मिस्टर वाय को मिलना इतनी जबरदस्त उनकी अभिव्यक्ति है कि पूछो ही मत! एक बार मैं कोफी हाऊस में बैठा था । मैं अंधेरे में वहाँ बैठा था और पीछे से मिस्टर वाय वहाँ आये। मिस्टर वाय को मेरी मौजुदगी की खबर नहीं थी कि मैं (गुर्जिएफ) भी यहाँ हूँ। किसी मित्र के सामने उसने बोलना शुरू किया। एक घण्टे भर वे बोले होंगे। परन्तु मजा आ गया! क्या छटा.. क्या लाक्षणिकता...... क्या मुद्रा... शब्दों में रंग भरने की क्या कला। क्या वाक्य संयोजना... क्या..... उत्साह.....और क्या मजा/आनंद.... | निंदा को तटस्थता से सुनना साधना का एक आयाम है। निंदक को दर्पण जैसा समझना चाहिए। आदमी नहा धोकर तैयार होता है और दर्पण में अपना चेहरा देखता है। दर्पन कहीं दाग-धब्बा दिखायें तो वह तुरन्त साफ कर लेता है, पौंछ लेता है। दर्पण जैसे आदमी भी चाहिए कि नहीं?
निंदक नियरे राखिए अंगन कुटिया बिछाय
बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाई निंदा के शब्द हो या स्तुति के शब्द | शब्द आखिर शब्द है। प्रभु या गुरू के शब्द हमारी चेतना को झंकृत कर सकते है। दूसरे के शब्दों से क्या हो सकता है? हाँ उन्हे सुनने के बाद सार ग्रहण अवश्य करना । आपको लगे कि केवल द्वेषबुद्धि से बोला गया है तो उन्हें छोड़ा जा सकता है। कोई बड़े प्रेम से
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