________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मानता था। उनकी आज्ञा का उल्लंघन कभी नहीं करता था। एक बार चाणक्य को पता लगा कि कुछ इर्ष्यालु व तेजोद्वेषी लोगों ने चन्द्रगुप्त को मेरे विरूद्ध कुछ झूठी बातें कह कर भड़का दिया है। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त की परीक्षा के लिए मन ही मन एक योजना बनाई और उस योजना के अनुसार वे चन्द्रगुप्त, कुछ मंत्रीगण, सामंत और विशिष्ट लोगों को साथ लेकर एक बावड़ी के पास पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होनें चन्द्रगुप्त को आज्ञा दी। तुम बावड़ी में उतरो। चन्द्रगुप्त ने तुरन्त गुरूवर के आदेश का पालन किया और सीढ़ियाँ नीचे उतरता हुआ पानी के करीब पहुँच कर खड़ा हो गया। यह देखकर बोले चन्द्रगुप्त और नीचे उतरो। इस आदेश को सुनकर चन्द्रगुप्त बावड़ी के पानी में उतर गया। जब उतरते-उतरते उसके गले तक पानी आ पहुँचा तो वह ठहर कर गुरूजी की ओर देखने लगा व नये आदेश का इन्तजार करने लगा। यह देख चाणक्य ने फिर कहा चन्द्रगुप्त! बावड़ी के पानी में और गहरे तक उतरो। इस आदेश को सुन चन्द्रगुप्त अब तो उतरता-उतरता पूरा का पूरा पानी में डूब गया। वह तैरना नहीं जानता था, पानी में जाते ही उसकी साँस रूकने लगी, प्राण अकुलाने लगे। वह पानी में बेचैन हो गया। परन्तु पानी से बाहर नहीं निकला। उसकी छटपटाहट अकुलाहट को देखकर चाणक्य ने सेवकों को आज्ञा दी कि चन्द्रगुप्त को तुरन्त पानी से बाहर निकालो। इस आदेश को सुनकर सेवक तुरन्त ही पानी में कूदे और अकुलाते व डूबते हुए चन्द्रगुप्त को बावड़ी से बाहर निकाला । सामान्य उपचार करने के बाद कुछ स्वस्थ हुआ तो गुरू चाणक्य ने पूछा । चन्द्रगुप्त! सच कहना कि पानी में डूब जाने के बाद तुम्हारे दिल में मेरे प्रति क्या विचार उत्पन्न हुए थे? चन्द्रगुप्त गुरूदेव को प्रणाम करते हुए बोला- गुरूजी! मैंने सिर्फ इतना ही सोचा कि आपने मुझे धरती का साम्राज्य दिलवाया है और अब लगता है कि आप मुझे स्वर्ग का साम्राज्य दिलवाना चाहते हैं। "मम लाभेति पेहाओ" गुरू जो कुछ कहते होंगे, या करते होंगे वो मेरे हित के लिए और लाभ के लिए करते होंगे। यह शिष्य के अंतर में गुंथ जाना चाहिए। इस बात को सुनकर चाणक्य गद्गद हो
81
For Private And Personal Use Only