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बात कही है अतः गुरू आज्ञा और समर्पण बिना की आराधना भी विराधना गिनी जाती है। गुरू के अनुसरण और समर्पण से शिष्य अनेक प्रकार की पाप प्रवृत्तियों से अपने आप को बचा लेता है और सद्धर्म की साधना में गतिशील बनता है। जीवन की सुरक्षा के लिए या तो खुद ड्राइवर बनें अथवा ड्राइवर को अपनी गाड़ी सौंप दो। जो खुद ड्राइवर नहीं बने हैं और अपनी गाडी ड्राइवर को सौंपने के लिए तैयार नहीं है, वे बेमौत के शिकार हो जाते है। बस, उसी प्रकार जब तक स्वयं योग्य न बन जाय वहां तक अपनी जीवन नौका, गुरूदेव को सौप देनी चाहिए. इसी में जीवनविकास और आत्मविकास है। ऐसे पुज्य गुरूदेवों की सेवा करने से हमें हृदय से उनके आशीर्वाद प्राप्त होते है, जिससे हमारा जीवन ही बदल जाता है। विनय, वैयावच्च, आदर, सत्कार, बहुमान, भक्ति तथा आज्ञापालन आदि से उनकी सेवा की जा सकती हैं आचार्य देव श्री धर्मघोष सूरीश्वरजी महाराज की सेवा संग भक्ति से पेथड़शाह का जीवन कितना तेजस्वी बन गया । आमराजा के जीवन में जो अद्भूत परिवर्तन आया उसका एक मात्र कारण महान् प्रभावक आचार्य प्रवर श्री बप्पभट्ट सूरीश्वरजी के संग और सेवा से ही था। कलिकाल सर्वज्ञ सद् गुरूदेव श्री हेमचन्द्राचार्यजी की चरण सेवा को प्राप्त कर कुमारपाल महाराजा ने कैसी अद्भूत शासन प्रभावना की थी। भगवान महावीर के मौजूदा काल में श्रेणिक महाराजा भी जिस जीवदया का पालन न करा सके ऐसी जीवदया का पालन कुमारपाल महाराजा ने कलिकाल सर्वज्ञ के उपदेश से अपने राज्य में कराया अतः जीवन के अभ्युत्थान के लिए ज्ञान और चारित्र युक्त आत्माओं की सेवा में सदैव तत्पर रहना चाहिए। गुरू की आराधना से अनंत ज्ञान व अनंत आत्मगुणों को पा सकते हैं और बाहृय व अंतर्लक्ष्मी के स्वामि बन सकते है, जबकि गुरू की विराधना अज्ञान दुःख व दुर्गति का कारण बन सकती हैं। गुरू की सच्ची आराधना वही कर सकता है जो कि स्वयं के गुरू के प्रति पूर्णतया समर्पित हो, गुरू पर जिसकी अटूट आस्था हो, विश्वास हो, भरोसा हो। चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन की एक घटना है। चन्द्रगुप्त मौर्य चाणक्य को अपना उपकारी गुरू
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