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सा बन जाता है। आदमी चार स्थानों में पगला बनता है। (1) दर्पण : बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी भी जब दर्पण के सामने होता है तब पागल बनता है। (2) स्त्री : अच्छे-अच्छे मर्द भी स्त्री के सामने पागल बन जाया करते है। वह अगर जुतियाँ उठाने को कहती है तो वह भी उठा लेते है। (3) बालक : बड़ी उम्र के लोग (दादा-दादी) भी बालक के सामने पागल जैसा व्यवहार करते है। बालक रोये तो वे भी साथ-साथ आ......आ....... आ करते रोते है। अगर वह हँसे तो वे भी हाँ.. हाँ.. हाँ करके हँसते है। (4) प्रशंसा : खुद की प्रशंसा सुनकर तो अच्छे-अच्छे लोग पगले हो जाते है। वरना कौवा जैसा चालाक पक्षी शियार की बातों में कैसे आ जाता? अपनी प्रशंसा करने वाले आदमी से सावधान रहना क्योंकि वह आपसे अपना उल्लू सीधा करवाना चाहता है अतः प्रशंसा से फुलकर गुब्बारा मत बन जाना अन्यथा चापलूस अपना काम निकलाकर रफू-चक्कर हो जायेगा।
भगवान कहते हैं, यशोविजयजी म. कहते है स्वप्रशंसा दोष हैं। इसीलिए इस दोष को दूर करने का प्रयत्न किजिये।
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