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भी विनय विकेक रहा नहीं हैं। कहाँ खुद के माँ-बाप को कावड़ में बिठाकर उठाने वाला श्रवणकुमार और कहाँ बाप को पैदल चलाने वाले ऐसे बंदे। क्या जमाना आया है। बेटे को भी यह बात ठीक नहीं लगी। वह तुरन्त ही टट्टू से नीचे उतर गया और बाप को उपर बिठाया। बेटा पैदल चलने लगा। कुछ दूरी पर फिर लोग मिले फिर उन्होंने ताना कसा । देखो तो ! कैसा निष्ठुर बाप है । खुद तो टट्टू पर चढ़ा है और नन्हीं सी जान को पैदल चला रहा है। कैसा कलियुग आया है। इतना बड़ा बाप होकर खुद टट्टू पर बैठ गया है और फूल जैसे कोमल बेटे को पैदल चला रहा है। कहाँ गया प्रेम और वात्सल्य ? कहाँ गया वो दिल? जो खुद स्वयं के पुत्र के उपर भी दया न करे उसे बाप कहना कि पाप कहना? बाप को यह सुनकर बहुत ही बुरा लगा। परन्तु अब करें क्या? अकेला लड़का बैठे तब भी लोग बोलते हैं। अकेला बाप बैठता है तब भी लोग बोलते हैं। लोगों के मुँह तो बंद नहीं किये जा सकते। बाप बेटे दोनों परेशान थे। तभी बाप को हुआ कि बेटा ! अब कि हम दोनों बैठ जाते हैं। जिससे किसी को भी बोलने का मौका ही नहीं रहेगा। वे दोनों बैठ जाते हैं । वे दोनों ही टट्टू पर बैठ गये। फिर कुछ लोग मिले वो कहने लगे । अरे रे! ये दोनों कितने । निर्दयी है। एक जानवर पर दो-दो लाश लदी जा रही है। बेचारे निर्बल- कमजोर-मडियल टट्टू की आज जान ही निकल जाएगी। क्योंकि जो टट्टू खुद अकेला भी मुश्किल से चल रहा हो वहाँ दो दो उपर बैठ गये हैं, पता नहीं इस बेचारे का क्या होगा। लोगों के दिलों में आज जीवदया ही नहीं बची हैं। अब उनके पास कोई विकल्प शेष नहीं था । उन दोनों ने मिलकर टट्टू के पैर बांध कर उसे ही लकड़ी में बांधकर उठा लिया और आगे चलने लगे। आगे चलकर लोगों ने जब यह विचित्र दृश्य देखा तो वे उस पर हँसने लगे। देखो तो जिस पर सवारी करनी चाहिए उसी को उठाकर चल रहे है। दो दो गधे एक टट्टू को उठाकर 'लादकर जा रहे है। वहाँ ही एक नदी के पुल से गुजर रहे थे कि पानी में प्रतिबिंब / परछाई देखकर टट्टू भडका रस्सी टूट गयी टट्टू सीधा नदी में जा गिरा। बाप बेटे एक दूसरे का मुँह ताकते रह गये। सबकी
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