________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
-
स्तत्यास्मयो न कार्य: "स्वप्रशंसा से अहंकार न करना"
लोग घर मकान बनाते हैं। आठ-दस नक्शों में से एक का चुनाव करते हैं। फिर मकान बनवाना प्रारम्भ करवाते हैं। मकान बन रहा है, पाँच मंजिला मकान बन रहा है। पचीस कमरे बनवाये मकान में। मकान को बढ़ते देखते है और मुस्कुराते हैं। रहने के लिए दो चार कमरे काफी हैं, पर हम पांच मंजिला मकान चाहते है। मन जोड़-तोड़ करवाता है। यहाँ पर यह चीज पसन्द न आयी तो तुड़वा दी। नई जुड़वा दी। हमारे मनोनुकूल मकान बन गया। मकान तो बन चूका, मगर अभी तक इस मकान की कीर्ति चारों तरफ नहीं फैली। मकान तो बन गया, परन्तु मन सन्तुष्ट नहीं हुआ। आदमी सोचता हैं मैंने अपनी जिन्दगी की सारी सम्पत्ति इस मकान के निर्माण में लगा दी, तो इसका फल भी तो मुझे मिलना चाहिए। वह अज्ञानी जीव यह नहीं जानता कि मकान में है क्या? केवल ईंट-चूने, पत्थर का संयोग है। ईंट से ईंट को सजाया, पत्थर से पत्थर को सजाया, बीच में रेत-चूने-सीमेंट का संयोग दिया और मकान बना। इसमें सारी सम्पत्ति खर्च कर डाली और अपनी सम्पत्ति को नष्ट करके इतनी हिंसा करके भी वह बड़े आनन्द में है कि अरे वाह! क्या बंगला बना है। कितना भव्य और शानदार बंगला बना है मेरा । परन्तु जब तक शहर के सभी लोग नहीं आएंगे तब तक (मकान) बंगले की प्रशंसा कैसे होगी? उस आदमी ने एक तरीका अपनाया। सोचा गृह प्रवेश के दिन एक भोजन समारंभ का आयोजन किया जाए। भोज में शहर के सभी लोग आएँगे। जितने अधिक लोग आएँगे उतने ही लोग मकान की प्रशंसा करेंगे तो इस मकान के माध्यम से मेरी प्रशंसा हो जाएगी। उसने गृह प्रवेश के दिन भोज आयोजन किया। लोग आ गये । प्रशंसा का भूखा वह आदमी आये हुए लोगों को बंगला दिखाने के लिए उपर से नीचे और नीचे से उपर जा रहा है। लोगों से कहता भी जाता है कि क्या तुम लोगों ने ऐसा मकान देखा है? लोग भी कहते हैं कि
3-60
For Private And Personal Use Only