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सुनकर बार बार अभिप्राय बदलते रहेंगे तो ऐसी हालत होती है। दुनिया तो ऐसी ही है। समय-समय पर वह अपना रंग बदलती रहती है। वह आज जिसकी निंदा कर रही है, कल उसकी प्रशंसा भी कर सकती है। अभी जिसकी प्रशंसा कर रही है, कुछ समय बाद उसकी वह निंदा भी कर सकती है : समाज मैं कहीं कोई अच्छा कार्य करने के बाद यदि लोगों से प्रशंसा की अपेक्षा दिल में रहेगी तो शायद कभी मन उद्विग्न भी बन सकता है। यह कोई हार्ड एण्ड फास्ट नियम नहीं है कि दुनिया आपके हर अच्छे कार्य की प्रशंसा करेगी। यह दुनिया तो रंगीली है। यह दुनिया तो आपके अच्छे कार्य की भी उपेक्षा कर सकती है। इतना ही नहीं आपके अच्छे कार्य की कद्र करना तो दूर रहा, आपकी निंदा भी कर सकती है। अतः बेहतर यही है अच्छे कार्य करते जाओ। मन में किसी प्रकार की अपेक्षा मत रखो। दुनिया के किसी भी महापुरूष को उनके समकालीन लोगों ने उनकी बुराई करने में कुछ बाकी नहीं रखा है.... परन्तु बुराई करने वाले काल के गर्त में कहाँ खो गये उनका कुछ पता नहीं है जबकि महापुरूष काल-विजेता बनकर आज भी लोक हृदय में जीवित हैं। दुर्जनों का काम है बकवास करना, त्यों साधक का काम है दृढ़ता के साथ आगे कदम बढ़ाने का। हाथी चलत बाजार, कुत्ते भौंकत हजार, नगण्य बातों को ध्यान में लेकर समय बर्बाद नहीं करना और अपना संतुलन भी नहीं बिगाड़ना।
एक वृक्ष के नीचे बुद्ध बैठे थे, एक व्यक्ति को उन का उपदेश मंजुर नहीं था। शन्ध्या के समय वह बुद्ध के पास आया अनाप सनाप गालियाँ दी क्रोध किया। बुद्ध ने कुछ भी जवाब नहीं दिया। वह आदमी हैरान हो गया कि इनको तो कुछ असर ही नहीं हो रहा है। मैंने तो सोचा था कि ये क्रोध करेंगे-गालियाँ देंगे-समत्व खो बैठेंगे, मेरे साथ लडेंगे और मैं इनको पीट दूंगा, पर ऐसा नहीं हुआ। उसने कहा मैंने आपको इतनी गंदी गालियाँ दी पर आप तो कुछ बोले ही नहीं। बुद्ध ने कहा समझलो तुम बाजार से गुजर रहे हो, बाजार में व्यापारी लोग वस्तु-चीज खरीदने के लिए कहते है अगर खरीदोगे नहीं तो किसकी कही जाएगी? उसने कहा व्यापारी की, बुद्ध ने कहा बस तुमने
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